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हल्दी.क्षेत्र के बसुधरपाह गांव में चल रहे श्रीराम जानकी प्राण प्रतिष्ठात्मक महायज्ञ के पांचवें दिन कथावाचक आचार्य दयाशंकर शास्त्री जी ने कृष्ण विवाहोत्सव के वर्णन से प्रसंग को छेड़ते हुए बताया कि रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं. भीष्मक मगध के राजा जरासंध का जागीरदार था. रुक्मिणी जी को श्रीकृष्ण से प्रेम हो गया और वह उनसे विवाह करने को तैयार हो गईं, जिनका गुण, चरित्र, आकर्षण और महानता सर्वाधिक लोकप्रिय थी. रुक्मिणी का सबसे बड़ा भाई रुक्मी दुष्ट राजा कंस का मित्र था, जिसे कृष्ण ने मार दिया था और इसलिए वह इस विवाह के खिलाफ खड़ा हो गया था.
अंततः कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह का विवाह का प्रसंग सामने आया तो पूरा पंडाल झूम उठा और गायक चन्दन के साथ प्रांगण में उपस्थित सभी महिलाओं ने आपन खोरिया बहार ऐ भीष्मक बाबा, आवतारे दुल्हा दामाद ऐ सखि, इसी गीत के साथ द्वार पूजा हुआ. बारातियों का नाच गाना हुआ, फिर विधि-विधान से कृष्ण जी को को परछा गया तथा जयकारे के साथ जयमाल हुआ. झांकी के अंत में कन्यादान और सिन्दूरदान के साथ विवाहोत्सव संपन्न हुआ.
वहीं दूसरी तरफ वैदिक मंत्रोच्चार के साथ श्रीराम-जानकी परिवार , भगवान शिव परिवार, बजरंग बली व शालिग्राम देवता का अन्नाभिषेक, फलाभिषेक, पुष्पाभिषेक हुआ जिसमें पूरे नगर के श्र्द्धालु अपने-अपने घर से फल-फूल और अनाज लेकर आए और भगवान को ढका गया. साथ ही नगर में मूर्ति भ्रमण कराया गया जिसमें गांव के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया गाजे-बाजे के जूलूस निकालकर नगर भ्रमण कराया गया.