पहली बारिश से घाघरा का तांडव शुरू, 40 बीघा खेत घाघरा नदी में समाहित

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बांसडीह से रविशंकर पांडेय

कोरोना महामारी में जहाँ पूरा देश परेशान है, वहीं पहले ही बारिश से घाघरा नदी का तांडव शुरू हो गया है. रिगवन गाँव के पूरब छावनी के पास खेतों के कटान के साथ पेड़ भी धराशायी होकर घाघरा नदी में समाहित होते दिख रहे हैं.

अभी तक लगभग बीते दो दिन में 40 बीघा खेत घाघरा के कटान से समाहित हो गए हैं, जिससे तटीय क्षेत्र के किसानों में दहशत व्याप्त है. इससे किसानों को चिंतित होना लाजमी है. किसानों में दहशत इस बात का बना हुआ हैं कि जो बचा है वह बचेगा की नहीं. किसानों का कहना है कि पहले कोरोना महामारी के चलते परेशानी हुई. हालांकि सरकार ने अब काफी छूट दे रखी थी. लेकिन कल से लेकर आज तक 40 बीघा जमीन घाघरा नदी में समाहित होने से निराशाजनक स्थिति बनी हुई है, जब कि जिलाधिकारी श्रीहरि प्रताप शाही ने तटीय इलाका का भ्रमण हफ्ता दिन पहले ही किया था. अब देखने वाली बात होगी कि घाघरा नदी का तांडव कहाँ तक रियायत करता है.

गंगापुर में कटानरोधी कार्य अब तक शुरू नहीं हुआ

गंगा का जलस्तर गायघाट बलिया में प्रति घंटे एक सेमी के हिसाब से बढ़ाव पर है. शुक्रवार को गंगा 51.800 मीटर पर थी. गायघाट में चेतावनी बिदु 56.615 मीटर है, जबकि खतरा बिदु 57.615 मीटर है

केंद्रीय जल आयोग, वाराणसी

उधर, गंगापुर में शुक्रवार को भी 200 मीटर परिक्षेत्र में कटानरोधी कार्य का शुभारंभ नहीं हो सका. इससे लोगों का आक्रोश और बढ़ गया है. वहीं दूसरी तरफ गंगा की जलस्तर में वृद्धि के कारण अन्य स्थानों पर हो रहे कटानरोधी कार्य भी प्रभावित होने लगे हैं. तटवर्ती लोगों को जानमाल का भय सताने लगा है. लोगों का कहना है कि जनप्रतिनिधियों व अफसरों की लापरवाही तथा शिथिलता के कारण इस साल भी बाढ़ व कटान से बच पाना मुश्किल होगा. वर्तमान हालात के मद्देनजर 15 जुलाई तक किसी भी हाल में कटानरोधी कार्य पूरा हो पाना संभव नहीं हो सकेगा. इससे एक बार फिर जहां दर्जनों गांव बाढ़ व कटान की भेंट चढ़ेंगे, वहीं लाखों लोगों को खानाबदोश की जिदगी जीने पर मजबूर होंगे.