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वाराणसी से सुरेश प्रताप
प्रख्यात साहित्यकार ब्रह्मा शंकर पांडेय का 30 जनवरी को दोपहर लगभग 12 बजे निधन हो गया. यह जानकारी उनके भतीजे अमृत ने दी है. वह लक्ष्मी अस्पताल (कैंट) में भर्ती थे. उनकी उम्र लगभग 100 वर्ष थी. वह पिछले एक सप्ताह से गम्भीर रूप से बीमार थे.
प्रख्यात साहित्यकार अज्ञेय, शमशेर बहादुर सिंह, त्रिलोचन, शिवकुमार मिश्र, रमेश कुंतल मेघ, प्रो. चंद्रबली सिंह, विद्यानिवास मिश्र आदि उनके मित्रों में थे. अज्ञेय जी जब भी वाराणसी आते थे तो उनके लहरतारा स्थित आवास पर उनसे मिलने जरूर जाते थे. उन्होंने नया प्रतीक में उनकी कई कविताएं प्रकाशित की थी. पांडेय जी की पहली कविता ‘सरस्वती’ में प्रकाशित हुई थी. प्रेमचंद जब रामकटोरा में प्रेस चलाते थे, उनके यहां पांडेय जी का आना-जाना था.
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प्रेमचंद से सम्बन्धित कई स्मृतियों के बारे में उन्होंने बताया था. पांडेय जी से हुई मुलाकातों की अब याद आ रही है. इस बीच पुन: उनसे मिलने की मेरी इच्छा थी, लेकिन इसी बीच अचानक 26 जनवरी को उनके भतीजे अमृत ने सूचना दी की उनकी तबीयत अधिक खराब है और उन्हें रेलवे के मंडलीय अस्पताल में भर्ती किया गया है. हम उनसे मिलने पहुंचे, लेकिन व अचेतावस्था में थे. चिकित्सकों के सुझाव पर उन्हें लक्ष्मी अस्पताल (कैंट) में भर्ती किया गया जहां मंगलवार दोपहर में उन्होंने अंतिम सांस ली. उनसे बातचीत करने की मेरी इच्छा अधूरी ही रह गई. इस महान साहित्कार को मेरा सलाम !!
1984 में वह जनवादी लेखक संघ की वाराणसी इकाई के अध्यक्ष थे. तब जलेस का यहां सम्मेलन हुआ था. जीवन के अंतिम समय में पांडेय जी काफी अकेले हो गए थे. इसके बावजूद जब भी उनसे मुलाकात होती थी, तो अपनी कविताएं जरूर सुनाते थे. पांडेय जी मूलत: बलिया के नगवा गांव के रहने वाले थे. बलिया के सुरहाताल को केन्द्र में रखकर वहां आनेवाली साइबेरियन पक्षियों के दर्द को उन्होंने बखूबी अपनी कविता में उकेरा है. अफसोस यह महान साहित्कार अपने ही शहर में अकेला हो गया था. बहुत कम लोग उनकी खोज-खबर लेने जाते थे. अपनों को देखने के लिए उनकी आंखें तरस जाती थीं. कभी चर्चा के केन्द्र में रहने वाला यह साहित्कार अंतिम दौर में हाशिए पर चला गया था. अपने ही लोग भूल गए थे.