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आसान नही नकल के तिलस्म को तोडना
नकल की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले ही बने नकल रोकने के पहरेदार
बैरिया से वीरेंद्र नाथ मिश्र
माध्यमिक बोर्ड परीक्षा में नकल रोकने की प्रशासन की सारी कवायदें उतना असरकारी नहीं दिख रहीं है, जितनी की अपेक्षा की जा रही है. अलबत्ता पिछले साल की तुलना मे काफी हद तक सुधार परीक्षा केन्द्रों पर देखने को मिल रहा है. बावजूद इसके नकल कराने के परम्परा मे पिता, मामा, मौसा, चाचा, भैया, जीजा, फूफा सब हाथ पाँव मारते देखे जा रहे हैं. परीक्षा केन्द्रों पर अचानक पहुँचने वाला पुलिस दस्ता डंडा भांजते कुछ को लठियाते तो काफी दूर तक खदेड़ते देखा जा रहा है. फिर भी पुलिस दस्ता के जाते ही नकल कराने वालो की भीड़ परीक्षा कक्षों के खिडकी, जंगले पर पहुंच ही जा रही है.
कई जगह नकल कराने में सुविधा के लिये दीवारों मे छेद बना दिया गया है. परीक्षा कक्ष में घुसने से पहले ही गेट पर ही नकल सामग्री छीन ली जा रही है, तब किसी दूसरे रास्ते नकल सामग्री पहुचाने की होड़ मच जा रही है. इण्टरमीडिएट रसायन विज्ञान प्रथम प्रश्न पत्र शनिवार को नकल लगभग नहीं के बराबर रहा. इसके पीछे प्रशासनिक चुस्ती नहीं, बल्कि पर्चा हल करने वालों का अभाव रहा. जब हल करने वाले ही नहीं मिले तो प्रशासन अपनी उपलब्धि का दावा करती रहे.
सच के आइने में अगर देखा जाए तो पूरे सत्र में क्षेत्र के विद्यालयों मे पठन पाठन हुआ ही नहीं है. किसी विद्यालय के प्रोयोगशाला का कपाट लगभग एक दशक से नहीं खुला. कागज पर भले ही प्रयोगशालाओं मे उपकरण व आवश्यक सामग्री की भरमार हो, लेकिन सब की सब प्रयोगशालायें खाली ही हैं. सच तो यह है कि इलाके के विद्यालयों मे छात्रो का नामांकन होता है. पढाई नहीं. विषयों के विशेषज्ञ शिक्षक ही नहीं है. शिक्षक रिटायर होते गये. नियुक्तियां हुई ही नहीं. अब पढाई तो हुई नहीं तो ऐसे मे नकल रोक पाना शिक्षको के लिये आसान नहीं.
फिर यहां खुद विभागीय उच्चाधिकारियों ने पहले से ही नकल की पृष्ठभूमि तैयार कर रख दी थी.
इलाके के बाबा लक्ष्मण दास द्वाबा राष्ट्रीय इण्टरमीडिएट कालेज बैरिया, पीएन इण्टरमीडिएट कालेज दुबेछपरा व महात्मा गांधी इण्टरमीडिएट कालेज दलन छपरा को परीक्षा केन्द्र नहीं बनाया गया है. यहा के ईट, पत्थर, कुर्सी मेज दोषी है. ब्लैक लिस्टेड है. सो केन्द्र नहीं बनाये गए. इन्हीं कालेजो के शिक्षक दूसरे केन्द्रों पर ड्यूटी कर सकते हैं. इन तीनों कॉलेजों मे एक साथ लगभग छ: हजार परीक्षार्थियों को एक साथ बैठा कर परीक्षा लिया जा सकता है. इन्हें परीक्षा केन्द्र नही बनाया गया और आरोपित है कि तीस हजार से तीन लाख रुपये लेकर मान्यता प्राप्त कई ऐसे विद्यलयों को परीक्षा केन्द्र बनाया गया है, जहां नकल रोक पाना किसी भी रूप में सम्भव नहीं है. खोली टाइप के कोठरियों मे जमीन पर बैठा कर परीक्षार्थियों से परीक्षा लिया जा रहा है.
यहां इस बार के परीक्षा में नकल रोकने मे कक्षनिरीक्षकों व बाहर पुलिस कर्मियों की बहुत ही किल्लत है. जिलाधिकारी के निर्देश पर जिला विद्यालय निरीक्षक व बेसिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय से कक्ष निरीक्षण कार्य हेतु जितने शिक्षक मुक्त किए गए उसमे से अधिकांश छुट्टी मना रहे है. उदाहरण सुदिष्ट बाबा इण्टर कालेज सुदिष्टपुरी को ही देखा जा सकता है. यहां के लिए 20 प्राथमिक शिक्षक भेजे गए, जिसमें से मात्र एक ही ड्यूटी करने पहुंचे. ऐसी परिस्थितियों मे केन्द्र व्यवस्थापकों को अपने स्तर से कक्ष निरीक्षकों की व्यवस्था करनी पड़ी. सोचा जा सकता है. व्यवस्था कैसे चल रही है.
सम्प्रति आम जनभावना की बात करें तो सब चाहते है कि नकल रुके, हमारे बच्चे प्रतिभावान बने. सब प्रदेश सरकार के इस निर्णय का स्वागत कर रहे है, लेकिन साथ ही साथ कुछ अपेक्षाएं भी रखते हैं. यथा विद्यालयो मे पठन पाठन का माहौल बने. इसके लिए शिक्षकों की तैनाती हो, पूरे सत्र पढाई हो. बच्चो को तैयार किया जाय. यह जागरूकता पैदा की जाय जैसे क्षेत्र के महाविद्यालयो में है कि यहा नकल नहीं हो पायेगा. इसका तो आगाज इसी बार से हो गया है. यह परवान चढेगा या नहीं, प्रदेश सरकार व जिम्मेदार तन्त्र पर निर्भर करता है.