इतिहास का सफर रथ यात्रा से महावीरी जुलूस तक

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.

सिकंदरपुर से संतोष शर्मा

SANTOSH SHARMAहर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीय को यहां उल्लास के साथ मनाया जाने वाला महावीर झंडोत्सव का इतिहास  काफी पुराना है. इसका आधार विभिन्न पुराणों में मिलता है. इस आयोजन के अतीत में झांकने से यह पदमपुराण,  नारद पुराण,  ब्रह्मपुराण,  स्कंद पुराण  आदि में वर्णित कथाओं को जहां पुनर्जीवित व साकार करता है, वही इसका दिन प्रतिदिन बदलता स्वरूप भारतीय दर्शन के इस सत्य को उदघाटित करता है कि जग स्थिर है, जबकि जगत की वस्तुएं परिवर्तनशील है.

सिकन्दरपुर में भी जगन्नाथ होते हैं रथ पर सवार

पुराणों में वर्णित कथाओं के मतानुसार एक बार सुभद्रा ने अपने भाई श्री कृष्ण से नगर भ्रमण करने की इच्छा प्रकट की. उनकी इच्छा का आदर करते हुए श्री कृष्ण ने सुभद्रा व बलराम के साथ नगर भ्रमण का किया था. उसी की स्मृति में इस रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है. एक अन्य कथा के अनुसार भगवान जगन्नाथ अपने निवास श्रीमंदिर से निकलकर वर्ष में एक बार अपने जन्मस्थान कुंड़िचा मंदिर की यात्रा करते थे. यह यात्रा वह रथ पर सवार होकर करते थे. इसीलिए इसे रथ यात्रा का नाम दिया गया. उसी की स्मृति में पूरी में प्रत्येक वर्ष रथ यात्रा का आयोजन होता है. पूरी की यात्रा की तर्ज पर सिकन्दरपुर में भी चतुर्भुज नाथ मंदिर के जगन्नाथ,  बलराम व सुभद्रा की मूर्तियों को रथ पर बैठाकर नगर का भ्रमण कराया जाता है. तथ्य  यह है कि यहां का आयोजन शुरू से ही पूरी की रथयात्रा की अनुकृति मात्र थी. हां, यात्रा तो वही रही , मगर उसका स्वरूप बदलता गया. बाद में उसका नाम भी बदल गया. यहां का यह आयोजन केवल जगन्नाथ की यात्रा नहीं रही, बल्कि उनका अनुसरण करते हुए   महावीर हनुमान जी की यात्रा भी हो गई.

 

5_BALLIA_LIVE_23 5_BALLIA_LIVE_16 5_BALLIA_LIVE_19

रथयात्रा का नाम भूलकर महावीरी झंडा का जुलुस कहने लगे

धीरे धीरे हनुमान की भी मूर्तियों की बढ़ती संख्या ने लोगों को इसके मूल स्वरुप से अनजान बना दिया. लोग रथयात्रा का नाम भूलकर महावीरी झंडा का जुलुस कहने लगे. तथ्य यह भी है कि विज्ञान व तकनीक के जीवन में बढ़ती पैठ ने पहले की अपेक्षा इसका स्वरूप भी काफी आकर्षक बना दिया. विज्ञान की ही देन है कि जगमगाते रंग-बिरंगी लाइटों से चकाचौंध बिखेरती हनुमान प्रतिमाएं भव्य व आकर्षक हो जाती हैं. इसी के साथ पौराणिक कथाओं पर आधारित झांकियां भी बनाई जाती है, जो हमारी स्मृतियों के पर्त को उधेड़ती  हैं. हमें सत्य की ओर ले जाती हैं. इसी के साथ सामाजिक कुरीतियों को प्रदर्शित करने वाली झांकियां हमारा मनोरंजन करने के साथ ही हमें नैतिक जीवन व्यतीत करने का संदेश देती हैं.