सद्भाव की मिसाल है पुरवा दादा का छपरा

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कृष्णकांत पाठक
बलिया। हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव का अद्भुत नजारा देखना हो तो शहर से सटे दुबहड़ ब्लाक के ग्राम सभा अखार के पुरवा दादा के छपरा में आपका स्वागत है. इस गांव में मजार व मन्दिर न सिर्फ एक ही परिसर में स्थित है, बल्कि यहां दोनों समुदायों के लोग उर्स व शिवरात्रि का पर्व एक साथ मनाते भी हैं. खास बात यह है कि मन्दिर के कर्त्ता-धर्ता व साल में दो बार लगने वाले उर्स (मेला) का सरंक्षक एक ही व्यक्ति है. उस शख्स का नाम है गुप्तेश्वर पाठक उर्फ गोगा पाठक.

राजनीति की रोटी सेंकने वालों के मंसूबे पर पानी फिरा
गांव के अख्तर अली के दरवाजे पर वर्ष 1988 में बाबा चुपशाह वारसी के मजार की स्थापना हुई. करीब 8 साल बाद ग्रामीणों के सहयोग से मजार से सटे शिव मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ. मजार से सटे मंदिर निर्माण की चर्चा क्षेत्र मे जोरों पर होने लगी. कुछेक लोगों का मत था कि इस गांव में हमेशा के लिए विवाद की नींव पड़ चुकी  है. लेकिन जब मंदिर बन कर तैयार हुआ तो ऐसी सारी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं. उन सभी के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आया, जो  राजनीति की रोंटी सेंकने के लिए तैयार बैठे थे.

शादी ब्याह में भी एक दूजे के यहां आते जाते हैं
करीब 70 घर हिन्दू व लगभग 30 घर मुस्लिम परिवारों की मिश्रित आबादी वाले इस गांव में हमेशा साम्प्रदायिक सद्भाव कायम रहता है. लोग होली व ईद एक साथ मनाते हैं. साथ ही एक दूसरे के शादी-ब्याह से लगातार सभी प्रकार के सुख-दुख के सहभागी बनते हैं. मजार पर लगने वाले  उर्स मेले के संरक्षक गुप्तेश्वर पाठक का कहना है कि सजदा  तो किसी  का भी किया जा सकता है. उन्होंने  कहा कि मुझे गर्व है इस बात का कि कौमी एकता को कायम रखते हुए मजार पर वर्ष में दो बार लगने  वाले उर्स मेले का संचालन करने का जिम्मा मुझे मिलता है. मंदिर से जुड़े सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त त्रिलोकी राय कहते हैं कि हमें इस बात की खुशी होती  है कि गांव में जमीन-जायदाद के लिए विवाद भले होते हैं, लेकिन मंदिर अथवा मजार के  बारे में कोई न तो गलत बोलता है न ही सोचता है. बाबा चुपशाह वारसी के खानदान के अख्तर अली का कहना है कि मजार पर मनौती मांगने  के लिए पहुंचने वाले लोगों में अधिक संख्या  हिन्दूओं की रहती  है. उन्होंने बताया कि हर धर्म-मजहब का सम्मान करना हमारी  परम्परा  है.