श्रीकृष्ण रास लीला

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गुरू पूर्णिमा (गुरु नानक जयंती) का दिन था। हमारे रिश्तेदारों ने एक बार से अधिक ही कहा था उस दिन हम सपरिवार राजापुर पहुंचें। राजापुर बिहार के बांका जिले का एक भरा-पूरा गांव है। हमने भी सोचा कि अवश्य ही विशेष बात रही होगी। मैंने भी पत्नी व बच्चों से यह बात कहकर तैयार होने के लिए कहा । पत्नी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर गयी। बच्चों ने सोचा कि भ्रमण पर जायेंगे।

RADHA AND KRISHNA
RADHA AND KRISHNA

बहरहाल भागलपुर से शाम पांच बजे एक ऑटो रिक्शा पर बैठे जो सीधे उसी गांव को जाता था। शाम के सात बजे से कुछ पहले ही हम गांव में प्रवेश कर गये।
राजापुर में जहां हमें जाना था,वहीं जाकर ऑटो रिक्शा रुकी। देखा कि शामियाने लगाये गये हैं। लोग व्यवस्था में व्यस्त थे। शंखध्वनि के बीच लोगों की भीड़ जैसे राधा-कृष्ण मन्दिर की ओर उमड़ पड़ी है। मेरी जेहन दिन, तारीख व किसी त्योहार के आकलन में व्यस्त हो गया। तभी पत्नी ने मेरा बायां कंधा झंझोड़ते हुए कहा- यह चार दिवसीय रास पूजा प्रत्येक वर्ष रास पूर्णिमा के दिन शुरू होती है।
देखा कि राधा-कृष्ण मन्दिर में दोनों की प्रतिमाएं एक घूमते चक्र पर स्थापित की गयी हैं। प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के बाद विधिवत् पूजा कर भोग लगाया गया। इसके बाद सभी श्रद्धालुओं को भोग वितरित किया गया। भोग में पांच प्रकार के फल,चिवड़ा,दही,केला, पूड़ी,कच्चा चावल आदि मिले थे। उत्सव के चारों दिन सुबह-शाम क्रमबद्ध भोग-आरती का आयोजन किया गया। अभिभूत कर देने वाला दृश्य था और श्रीकृष्ण जैसा ही मोहक। लगातार चार दिनों रास पूजा का आयोजन कर भक्तों-श्रद्धालुओं को भोग वितरित किया जाता। हमें तो लगा कि नहीं आने से एक निर्मल आनन्द से वंचित रह जाते। बच्चों ने भी भरपूर आनन्द उठाया।
भक्ति-उत्सव के अतिरिक्त इस आयोजन का दूसरा पहलू भी अत्यन्त उत्साहित करने वाला था। उसके अन्तर्गत इन चार दिनों में विज्ञान,अंग्रेजी व गणित प्रश्नोत्तरी, क्विज प्रतियोगिता,बोरा दौड़,चम्मच दौड़,सूई धागा पिरोना,धीमी साइकिल चालन मुकाबले आयोजित किये गये। साथ ही शंख-फूंक, ऊं का दीर्घ श्वांस के साथ उच्चारण, धर्म-ज्ञान की भी कई रोचक प्रतियोगिताएं हुईं। प्रतियोगिताओं में कोई भी भाग ले सकते थे। इनमें आस-पास के कई अन्य गांवों के प्रतियोगी भी शामिल हुए। प्रतियोगिताओं में बच्चों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। उनमें चेहरों से तो जैसे अद्भुत उत्साह की रसधार टपक रही थी। प्रतियोगिताओं के बाद अंतिम दिन एक संक्षिप्त सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया।
अंत में विजेता प्रतियोगियों को पुरस्कार वितरिरत किये गये। इसके अलावा सांत्वना व प्रोत्साहन पुरस्कार भी प्रतियोगियों को बांटे गये। चौथे दिन शाम को श्री राधा-कृष्ण की प्रतिमाएं धूमधाम से विसर्जित कर दी गयीं। इस तरह उल्लास के साथ रास पूजा का समापन हुआ।
हालांकि ऐसा आयोजन देश के किसी कोने में होता हो किन्तु हमने अपने आस-पास या सुदूर जिलों में ऐसा देखा न सुना था।

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