अब कब चेतेंगे! खूब मिटाया हमने-तुमने, पानी यूं नादानी में, नहीं बचा धरती पर पानी, बहा व्यर्थ बेईमानी में

जल और जीवन का चोली दामन का साथ है. हमें जीवित रहने के लिए जल तो चाहिए ही प्रकृति प्रदत्त इस जल को संचित करने की व्यवस्था भी हमें ही करनी पड़ेगी.