रामव्यास बाबा – तिकवत का बाड़…… आगे बढ़ मरदे….. बाबा एगो हइए हवन

कद काठी से हल्के फुल्के थे ही, मगर उनकी यह हरकत प्रेमचंद की ‘बूढ़ी काकी’ की याद दिला रही थी कि ‘बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरामन होता है.’