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लोक साहित्य व संस्कृति के पुरोधा, भोजपुरी के शेक्सपियर का गांव कुतुबपुर काश. स्थानीय सांसद व केन्द्रीय राज्य मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी के सांसद ग्राम योजना के तहत गोद में होता तो शायद पुरोधा के गांव को तारणहार की प्रतीक्षा नहीं होती. गंगा नदी नाव से उस पर छपरा से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित कुतुबपुर गांव आज भी अंधेरे में है. कार्यक्रमों की रोशनी व राजनेताओं का आश्वासन भी उस गांव को रोशन नहीं कर सका.
रविवार को लोक संस्कृति के वाहक कवि व भोजपुरी के शेक्सपियर माने जाने जाने वाले भिखारी ठाकुर का जयंती मनाई गई, लेकिन क्या कोई यकीन कर सकता है कि भक्तिकालीन कवियों व रीति कालीन कवियों के संधि स्थल पर कैथी लिपि में कलम चलाकर फिर रामलीला, कृष्णलीला, विदेशिया, बेटी-बेचवा, गबरघिचोरहा, गीति नाट्य को अभिनीत करने वाले लोक कवि भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का परिवार चीथड़ों में जी रहा हो.
असीमीत जमीनी जानकारी, सपाट शैली व अलौकिक इल्म ने तब के ‘लोकगायक’ भिखारी ठाकुर को अंतर्राष्ट्रीय उंचाई दी. अति सामान्य इस व्यक्ति की लोक समझ, शोध प्रबंधों का साधन बन गई. भोजपुरी के प्रतीक भिखारी ठाकुर अपनी प्रासंगिक रचनाधर्मिता के कारण भारतीय लोक साहित्य में ही नहीं, सात समुंदर पार मारीशस, फीजी, सूरीनाम जैसे देशों में भी अत्यंत लोकप्रिय हैं.