गांव की गलियों से सिमट कर अब कमरों में बंद हो गई होली

होली यानि फागुन मस्‍ती का त्‍योहार है. रंग की पहली याद गांव से ही शुरू होती है. बहुत दिन नहीं हुए, अभी एक दशक पहले तक गांव के सभी बुर्जुग, यूवा घर-घर जाकर फाग गाते थे.

‘मधु ऋतु मधुर-मधुर रस घोले, मधुर पवन अलसावे हो रामा…’

बसंत पंचमी बीत गई फागुन चल रहा है, अब चौपाल से उठते चौताल और फाग के बीच ढोलक के सुर नहीं सुनाई देते हैं. अब तो लोग कैलेंडरों पर ही तारीख और दिन देख-देखकर निर्भर रहते हैं. गांव हो या नगर बस यही लगता है कि बिसर गईल फाग भूल गई चाईता.