पत्रकारिता दिवस पर खास रिपोर्ट: दूध नहीं छाछ फूंक कर पीने वाली हो गई है पत्रकारिता

पत्रकारिता दूध फूंककर पीने की नहीं बल्कि छाछ फूंक कर पीने की चीज हो गई है. आज इस विधा से जुड़े लोगों को पत्रकारिता दिवस पर आत्म चिंतन करने की जरूरत है कि पत्रकारिता बेबाक रहेगी या सत्ता की गुलाम बन कर रह जाएगी. अगर बेबाक रही तो समाज राष्ट्र निर्माण के काम आएगी अगर सत्ता की कठपुतली बनी तो देश और समाज में विघटन पैदा करने का काम करेगी.

हिंदी पत्रकारिता दिवस पर पत्रकार वेलफेयर सोसाइटी की गोष्ठी, जानिए क्यों है आज का दिन खास

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कल देश गुलाम था पत्रकार आजाद, लेकिन आज देश आजाद है और पत्रकार गुलाम

कल देश गुलाम था पत्रकार आजाद, लेकिन आज देश आजाद है और पत्रकार गुलाम. देश में गुलामी जब कानून था तो पत्रकारिता की शुरुआत कर लोगों के अंदर क्रांति को पैदा करने का काम हुआ.

स्वप्निल राय की पिटाई की कड़े शब्दों में निंदा

मंगलवार को हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर स्थानीय बस स्टैंड स्थित एक हाल में “आज का दौर, पत्रकारिता एवं कठिनाइयां “विषयक संगोष्ठी संपन्न हुई.

अगले साल तक उपलब्ध हो सकता है बलिया में पत्रकार भवन – डीएम

आजादी के पहले भी पत्रकारिता थी. लेकिन उस समय स्वतंत्रता पाने के लिए पत्रकारिता थी. अब जन सामान्य तक विचारों को पहुंचाने के लिए पत्रकारिता की जाती है. पत्रकारिता में व्यवसाय भी जुड़ गया है, जिसे बढ़ाने के लिए ज्ञानवर्धक व रोचक तथ्यों का होना बहुत जरूरी है.