ब्रम्ह परमात्मा को छोड़कर ब्रह्मादिक पंच ब्रम्ह एवं समस्त लोक-लोकांतर नश्वर है. ब्रम्हा, विष्णु, रुद्र, महाविष्णु और सदाशिव सभी अपनी शतायु पूरी कर क्रमशः अपने कारण तत्व में लीन होते हैं. यह विचार है परीब्रजकाचार्य स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी का.
वेद वाणी को जिस परम ब्रम्ह परमात्मा का स्वरूप बताया गया है, उसे लौकिक मानव नहीं देख सकते. उस परम सत्ता का दर्शन तभी संभव है, जब हम पूर्ण रूप से गुरुदेव के शरणागत होकर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दें.
गुरु की महिमा अपरंपार है. उसके शरणागत होने में ही भक्तों का कल्याण निहित है. यह विचार है श्री वनखंडी नाथ मठ डुहा बिहरा सेवा समिति के अध्यक्ष स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी का.