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गांव मर रहे हैं…और मारे जा रहे हैं

दो बेटियां थी बिना जांचे-परखे जैसे-तैसे बियाह कर दिए…अब उ बेचारिन के का गलती जो ससुराल में नौकरानी बन के जी रही है, दो बेटों में एक कमाने सूरत भाग गया.

भटके युवा सिर्फ कश्मीर में नहीं… हमारे आपके इर्द गिर्द भी हैं

तुम्हारी दो कौड़ी की राजनीति और झंडा ढोने ने तुम्हारे पिता की हड्डियों को गला दिया, कल परिवार इस उम्मीद में था कि तुम पढ़ लिखकर दो पैसा लाते और बहन की शादी में पिता का सहयोग करते पर तुम सहयोग कहा से करते तुमने तो अपने खर्चे से उन्हें कर्ज में डाल दिया.

अब तो मेरा गांव शहर में रहता है और मेरा शहर….???

आपका पुश्तैनी घर अब बूढ़ा गया है और धीरे-धीरे उसके मुंडेर गिर रहे हैं. साज-सज्जा और प्लास्टर अब दीवार से अलग हो रहे हैं. उस जगह पर अब दिन भर कुत्ते बैठते हैं, जहां से घर के बड़े बुजुर्ग (बाबा) सबको डांटते, बोलते और गरियाते थे. ट्रैक्टर जहां खड़ा होता था, वहां अब दीमक और चींटियों का डेरा है.

…..सब कुछ बदला, पर जो नहीं बदला वो है कोरे वादे, किसानों का दर्द और नौजवानों की बेरोजगारी

इस देश में किसान होना सबसे बड़ा गुनाह है. तस्वीरें देख कर कलेजा फट जा रहा है, क्योंकि मैं भी एक किसान का बेटा हूँ और मेरी परवरिश उसी मिट्टी में हुई है, जिसे शहरों के लोग गंदगी कहते है. साहब! 2014 के बाद से सब कुछ बदला, पर जो नहीं बदला वो है कोरे वादे, किसानों का दर्द और नौजवानों की बेरोजगारी.