गदकाः शक्ति के दरबार में शौर्य का प्रदर्शन

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जेपी के गांव से लवकुश सिंह

LAVKUSH_SINGHदलजीत टोला में शेर ए काली क्‍लब के द्धारा आयोजित दुर्गा पूजा में गदका एक विशेष कार्यक्रम है. शाम के समय डंके की गड़गड़ाहट पर एकम के दिन से ही जब बच्‍चों से लेकर बुजुर्ग तक गदका खेलने उतरते हैं तो उनके शौर्य को देखने वालों की भीड़ उमड़ पड़ती है. सैफ, तलवार, सिंगल लाठी, डबल लाठी, छड़ी और खुद के शरीर आदि से देर रात तक लोग अपनी-अपनी कलाओं का प्रदर्शन करते हैं.

शक्ति की देवी के दरबार में लोगों का ऐसा मानना है कि इस प्रदर्शन से देवी खुश होती है. सप्‍तमी से विजयदशमी तक तो यहां गदका में ऐसी भीड़ होती है कि समिति के लोगों को भीड़ संभालने में पसीने छुट जाते हैं. अष्‍टमी, नवमी और विजय दशमी को तो गदका के लिए नंबर लगता है. इस दिन जिसे सैंफ या तलवार भांजने को मिल जाए, वह अपने आप को भाग्‍यशाली समझता है, किंतु इस वर्ष वारिश के चलते लगता है कि गदका का वह विशाल कार्यक्रम फीका पड़ जाएगा.

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वैसे सप्‍तमी के दिन मां का पट खुलते ही एक ओर दर्शन को भीड़ वहीं शाम को बारिश बंद होने के बाद भी गदका का नजारा देखने भी हजारों की भीड़ यहां पहुंच चुकी थी. डंके की तेज ध्‍वनि पर देवी के जयकारे से संपूर्ण क्षेत्र ही भक्तिमय सरोवर में समाहित था. रात्रि नौ बजे तक यूवाओं और बुर्जुगों ने अपने-अपने शौर्य का प्रदर्शन किया. समिति के लागों ने बताया कि नवमी और दशमी यानि आज और कल यहां गदका की और भी विशेष व्‍यवस्‍था की गई है. इस दिन गदका में केवल बाहर से आने वाले खिलाडि़यों को ही मौका दिया जाएगा.

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कोई आज की बात नहीं है यहां, गदका की परंपरा

सिताबदियारा में दुर्गा पूजा के दौरान गदका की परंपरा कोई आज की बात नहीं. यह परंपरा लंबे समय से यहां जीवित है. वैसे तब और अब के स्‍वरूप में काफी हद तक अंतर आ चुका है, फिर भी अन्‍य स्‍थानों की तुलना में यहां के गदका कार्यक्रम का अभी भी कोई जोड़ नहीं है. गांव के बुर्जुग बताते हैं कि एक समय था जब दशहरे में सिताबदियारा क्षेत्र में कई गांवों के लोग अपने-अपने गांव का डंका लेकर एक दूसरे समिति के पास जाते थे. डंके की गड़गड़ाहट पर सभी मजे खिलाड़ी अपने कला व शौर्य का प्रर्दशन करते थे. अब अधिकांश जगहों से इस परंपरा का अंत होते दिख रहा है. इसके पीछे जो कारण है, गांवों में बढ़ती आपसी विषमता. गदका के खिलाड़ी, शिक्षक त्रिलोकी सिंह, मुन्‍ना बैठा, विभूति यादव आदि बताते हैं कि अब लगभग गांवों से वह मेल भी खत्‍म हो गया है जो पहले हुआ करता था. तब गांव के लोग गदका के खिलाडि़यों को विशेष रूप से सम्‍मानित करते थे. अब तो न उस तरह का मेल रहा, न वह खेल. तब की बातें बताते हुए शंभू यादव कहते हैं कि गरीबा टोला और दलजीत टोला में गदका का विशेष आयोजन किया जाता था. गदका के खिलाड़ी जब अपनी कलाओं का प्रदर्शन करने उतरते तो उनकी हैरतअंगेज कला देख लोग चकित हो जाते थे. यह परंपरा दलजीत टोला में जीवित है, यह देख सभी को खुशी होती है. सभी का मानना है कि देवी दुर्गा शक्ति की देवी हैं, इसमें गदका के तहत शौर्य का प्रदर्शन हर हाल में जरूरी है.