विवेकानन्द सेवा समिति एंव जिला आशा संघ ने मनाई विश्व पृथ्वी दिवस

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.

‘जरा संभल कर चलिए ताकि आपके द्वारा जन्मे बच्चे भी जी सकें’ का हुआ आयोजन

बलिया। विश्व पृथ्वी दिवस के अवसर पर, विवेकानन्द सेवा समिति एवं जिला आशा संघ के संयुक्त तत्वावधान में नन्द भवन बसन्तपुर के प्रांगण में एक विचार गोष्ठी ‘जरा संभल कर चलिए ताकि आपके द्वारा जन्मे बच्चे भी जी सकें’ विषयक शीर्षक का आयोजन समिति के सचिव डॉ विजया नन्द पाण्डेय की अध्यक्षता में हुई.
गोष्ठी को सम्बोधित करती हुई, जिला आशा संघ बलिया की जिलाध्यक्ष पूनम पाण्डेय ने कही कि जूलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार देश मे लगभग 91000 जीवों की पहचान, बोटानिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा 45000 वनस्पतियों की पहचान की जा चुकी है. पूर्वजों की बातों पर अथवा वेदों में उल्लिखित जैव विविधिता के आंकड़ों पर विश्वास करें तो इन सबकी संख्या लगभग 84 लाख है.
गोष्ठी में बोलते हुए डॉ एम. एलियास ने कहा कि अब पक्षी भी कम ही नजर आते है, 40 वर्ष पूर्व गांव में जब किसी किसान को धूप में अनाज सुखाना होता था तो पक्षियों से रखवाली के लिए एक व्यक्ति को बैठना पड़ता था, परन्तु अब ऐसा नहीं है. यह पक्षी हमारी फसलों में लगने वाले नाना प्रकार के कीटों को खाकर फसलों की रखवाली करते थे, आज जब पक्षी नहीं है तो हमे कीट नाशक रसायनों का सहारा लेना पड़ता था.
गोष्ठी के अध्यक्षीय सम्बोधन में डां विजयानन्द पाण्डेय ने कहा कि गांव के तालाबों में अब नहीं बचे कोई जलचर आज के 40 वर्ष पूर्व गांव के लोगो को जब भी मछली खाने की इच्छा होती थी तो मछली गांव के तालाब से ही पकड़ ली जाती थी. तब कच्चे घरों की मरम्मत के लिए तालाब की खुदाई होती रहती थी, तब तालाबो में मनुष्य नहाता था अपने पशुओं को पानी पिलाता था, उस समय तालाबो में मेढ़क, जोंक, कछुआ, मछली पाये जाते थे. परन्तु हमारी आधुनिक फसल उत्पादन प्रणाली एवं जीवन शैली के चलते तालाब खत्म हो गए और जो बचे है अब उनमें जलचर नहीं है. जहां मेढ़क होते है वहां खरीफ की फसलों में कोई कीट नुकशान नहीं पहुंचा पाते है. क्योंकि मेढ़क कीटो पर नियंत्रण बनाये रखते थे.