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नई दिल्ली। अयोध्या भूमि विवाद में निर्मोही अखाड़े ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में नई अर्जी दायर की. इसमें केंद्र सरकार की उस मांग पर आपत्ति जताई है, जिसमे सरकार ने 67 एकड़ अधिगृहित जमीन राम जन्मभूमि न्यास को लौटाने की अनुमति मांगी है. अखाड़े का कहना है कि इससे वहां मंदिर नष्ट हो जाएंगे, जिनका संचालन अखाड़ा करता है. इसलिए अदालत विवादित भूमि पर फैसला ले.
सुप्रीम कोर्ट में इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर हो रही है. अदालत ने सुनवाई में केंद्र की उस याचिका को भी शामिल किया है, जिसमें सरकार ने गैर विवादित जमीन को उनके मालिकों को लौटाने की मांग की है.
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है. इसमें चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं.
*2.77 एकड़ परिसर के अंदर है विवादित जमीन*
अयोध्या में 2.77 एकड़ परिसर में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद का विवाद है. इसी परिसर में 0.313 एकड़ का वह हिस्सा है, जिस पर विवादित ढांचा मौजूद था और जिसे 6 दिसंबर 1992 को गिरा दिया गया था. रामलला अभी इसी 0.313 एकड़ जमीन के एक हिस्से में विराजमान हैं. केंद्र की अर्जी पर भाजपा और सरकार का कहना है कि हम विवादित जमीन को छू भी नहीं रहे.
*इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 साल पहले फैसला सुनाया था*
इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर 2010 को 2:1 के बहुमत से 2.77 एकड़ के विवादित परिसर के मालिकाना हक पर फैसला सुनाया था. यह जमीन तीन पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला में बराबर बांट दी गई थी. हिंदू एक्ट के तहत इस मामले में रामलला भी एक पक्षकार हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए. राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए. बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए.
इस फैसले को निर्मोही अखाड़े और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.
शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट में यह केस तभी से लंबित है.