उप्रा विद्यालय फुलवरिया के प्रांगण में स्वामी विवेकानन्द की प्रतिमा स्थापित

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.

सिकंदरपुर(बलिया)। जीवन के अंतिम प्रहर में सन्यासी बन जाना साधारण बात है. जबकि युवावस्था में ही संसार के आकर्षण एवं कबीर के माया महाठगिनी के मोहपाश को तोड़ कर सन्यासी बन जाना दृढ़ संकल्प और संयम का अनुपम उदाहरण है. वह स्वामी विवेकानन्द ही थे जिन्होंने यह कर दिखाया.
यह विचार है जिला बेसिक शिक्षाधिकारी सन्तोष राय का. वह क्षेत्र के उच्च प्राथमिक विद्यालय फुलवरिया के प्रांगण में स्वामी विवेकानन्द की नवस्थापित मूर्ति का अनावरण करने का बाद आयोजित समारोह को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे.
कहा कि स्वामी जी सन्यासी थे. भारतीय धर्म और दर्शन के ज्ञाता थे. जिन्होंने भारत की ज्ञानज्योति को सम्पूर्ण विश्व में आलोकित किया. उस समय जब वैष्णव धर्म में समुद्र यात्रा वर्जित थी. उन्होंने शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया. यह एक दुष्कर कार्य था. किंतु उन्होंने हार नहीं मानी. वहां उन्हें उपेक्षित ढंग से सम्मेलन में बोलने का अवसर मिला. बोलने के बाद उन्हें अभूतपूर्व सम्मान मिला. भारतीय दर्शन के उच्चतम शिखर और गहन अनुभूति से श्रोताओं को परिचय मिला.

शिक्षक ओमप्रकाश राय ने कहा कि विवेकानन्द जी ने अपने साथ भारत को भी विश्व पटल पर महान बनाया. यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि और देश सेवा थी. उनकी भावनाओं के अनुसार छुआछूत से दूर रहने की लोगों से अपील किया. भोला सिंह, मुद्रिका गुप्त, हीरालाल वर्मा, राजपति राम, हरिनाथ वर्मा, अमरनाथ गुप्त, संजय गुप्त, सत्येन्द्र राय, एसडीआई नगरा लालजी शर्मा आदि मौजूद रहे.अध्यक्षता उमाशंकर राय व संचालन मोहनकान्त राय ने किया.