Navratri 2018 : आश्विन (शारदीय) महानवरात्र – 10 से 19 अक्तूबर, किस मुहूर्त में करें कलश स्थापना

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आश्विन (शारदीय) महानवरात्र 2018 – 10 से 19 अक्तूबर
घर की परेशानियों से मुक्ति और खुशहाली पाने के लिए सबसे अच्छा होता है ये नौ दिन का समय

नवरात्र भारतवर्ष में हिंदूओं द्वारा मनाया जाने प्रमुख पर्व है. इस दौरान मां के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है. वैसे तो एक वर्ष में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं, लेकिन चैत्र और आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक पड़ने वाले नवरात्र काफी लोकप्रिय हैं. बसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वासंती नवरात्र तो शरद ऋतु में आने वाले आश्विन मास के नवरात्र को शारदीय नवरात्र भी कहा जाता है. चैत्र और आश्विन नवरात्र में आश्विन नवरात्र को महानवरात्र कहा जाता है. इसका एक कारण यह भी है कि ये नवरात्र दशहरे से ठीक पहले पड़ते हैं दशहरे के दिन ही नवरात्र को खोला जाता है. नवरात्र के नौ दिनों में मां के अलग-अलग रुपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रुप में भी देखा जाता है.

मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रुप हैं. नवरात्र के पहले दिन घटस्थापना की जाती है. इसके बाद लगातार नौ दिनों तक मां की पूजा व उपवास किया जाता है. दसवें दिन कन्या पूजन के पश्चात उपवास खोला जाता है. आषाढ़ और माघ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र कहलाते हैं. हालांकि गुप्त नवरात्र को आमतौर पर नहीं मनाया जाता लेकिन तंत्र साधना करने वालों के लिये गुप्त नवरात्र बहुत ज्यादा मायने रखते हैं. तांत्रिकों द्वारा इस दौरान देवी मां की साधना की जाती है.

शारदीय नवरात्र का शुभारंभ 10 से

शारदीय नवरात्र का शुभारंभ 10 अक्तूबर से होगा़ तैयारी अंतिम चरण में है. इस बार मां का आगमन नाव और गमन हाथी पर हो रहा है, जिसे शुभ माना जा रहा है़ इस दिन प्रतिपदा सुबह 7.56 बजे तक ही है.

हालांकि उदया तिथि में प्रतिपदा मिलने के कारण पूरा दिन यह तिथि मान्य होगी. इस दिन अभिजीत मुहूर्त दिन के 11.37 बजे से 12.23 बजे तक है. यह भी कलश स्थापना के लिए उपयुक्त समय है. वाराणसी पंचांग के अनुसार 7.56 बजे के बाद से द्वितीया लग जायेगी. इसलिए प्रतिपदा युक्त द्वितीया में भी कलश की स्थापना की जा सकती है.

चित्रा नक्षत्र एवं वैधृति योग में नवरात्र आरंभ होने के कारण कलश स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त श्रेष्ठकर है. मिथिला पंचांग के अनुसार भी मां का आगमन नौका और गमन हाथी पर हो रहा है. आगमन और प्रस्थान दोनों शुभ माना गया है. इस पंचांग के अनुसार कलश स्थापना के दिन से ही मां का आगमन शुरू हो जाता है. कलश स्थापित कर मां के अलावा अन्य देवी देवता का आह्वान किया जाता है. इस दिन सूर्योदय प्रातः 5: 47 पर होगा, इसके बाद से पूजा अर्चना शुरू हो जायेगी. प्रतिपदा सुबह 8.06 बजे तक है.

दुर्गा बाटी में 15 को कल्पारंभ

दुर्गा बाटी में 15 अक्तूबर सुबह 8.42 बजे के बाद कल्पारंभ होगा. इसी दिन सभी बांग्ला मंडपों में भी यह अनुष्ठान शुरू हो जायेगा. इसके बाद शाम में देवी का आमंत्रण और अधिवास होगा. बांग्ला के अनुसार इस बार मां का आगमन घोड़ा पर हो रहा है. फल छत्रभंग अौर मां का गमन झूला व फल मड़क है.

  • 16 अक्तूबर : इस दिन महासप्तमी है. सुबह 6.45 बजे के अंदर नवपत्रिका प्रवेश होगा. पूजा सह चंडी पाठ आरंभ 7.10 मिनट के अंदर, भोग निवेदन 9.40 , पुष्पांजलि 10.10 बजे, संध्याआरती शाम 6.40 बजे , संध्या भोग शाम 7.45 बजे है.
  • 17 अक्तूबर : इस दिन महाअष्टमी है. सुबह सात बजे पूजा सह चंडी पाठ का शुभारंभ होगा. सुबह 9.30 बजे कुंवारी पूजा, भोग निवेदन सुबह 10.15, पुष्पांजलि दिन के 10.30 से 11.15 बजे तक है. संध्या आरती शाम सात और संध्या भोग रात आठ बजे है.
  • 18 अक्तूबर : महानवमी के दिन सुबह 7.15 बजे पूजा सह चंडी पाठ का आरंभ होगा. भोग निवेदन 9.30 बजे, पुष्पांजलि 10.10 बजे, संध्या आरती शाम सात बजे और भोग निवेदन रात आठ बजे है.
  • 19 अक्तूबर : पूजा सुबह सात बजे शुरू होगी. पुष्पांजलि व मंत्रागिक विसर्जन सुबह 8.35 बजे के अंदर करना है. कलश विसर्जन दिन के 11.40 बजे के बाद और प्रतिमा निरंजन शाम 5.45 बजे के बाद करना है.
  • 17 को संधि पूजा : 17 को संधि पूजा है. इस दिन 12.03 बजे के बाद से पूजा शुरू होगी. बलिदान 12.27 बजे के बाद है. पूजा का समापन 12.56 मिनट के अंदर होगा.