व्हाट्स ऐप पर घूंघट जो दिखा सरकते हुए, गांव से होकर हवाएं भी पहुंची महकते हुए

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.

डाक्टर साहब ने नपा तुला एक हीं वाक्य कहा – ऊ तहरा से लजा तारी
शुक्रिया है हुजूर आने का…

ई. एसडी ओझा

यह युगल अब तक साठ से ज्यादा बसंत देख चुका है. ये डाक्टर साहब हैं और बगल में वाम अंगी उनकी धर्म पत्नी हैं ” सीता संवारों पीत वाम भागम ” की तर्ज पर बेहद जंच रही हैं. ये उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग से कुछेक साल पहले हीं सेवानिवृत हो चुकी हैं. डाक्टर साहब की शादी 1978 में हुई थी. इन्होंने गांव में हीं अपना क्लीनिक खोला ताकि गांव की खेती और डाक्टरी पेशा दोनों समांतर चला सकें. मैं और डाक्टर ( योगेन्द्र नाथ पाण्डेय ) साहब साथ हीं पले ,बढ़े हैं. छोटी कक्षाओं में साथ पढ़े भी हैं. मैं अक्सर जब डाक्टर साहब से मिलने जाता तो उनके क्लीनिक में हीं बैठ वापस आ जाता. उनकी श्रीमती जी से नहीं मिल पाता , कारण गांव में पर्दा प्रथा थी.

इसे भी पढ़ें – सेजिया पे लोटे काला नाग हो, कचौड़ी गली सून कइले बलमू

उनकी दैहिक भाषा थैंक्यू कहने जैसी थी
डाक्टर साहब के कुछ परिवारी जन बलिया शहर में भी रहते थे. एक दिन भाभी जी अपने बच्चे को गोद में लिए बलिया जाने के लिए ट्रेन पकड़ने जा रही थीं. बच्चा गोद में तिस पर बड़ा घूंघट. साथ में गांव के हीं हमारे हमउम्र दीन दयाल यादव साइकिल पर उनका सामान लादे चल रहे थे. दैवयोग से हम भी रास्ते में मिल गये. मैं अपनी बहन को उसकी ससुराल छोड़ने जा रहा था. मैंने अपने भांजे को भेजकर बच्चे को ले लिया. भाभी जी ने चैन की सांस ली होगी, क्योंकि उनकी दैहिक भाषा थैंक्यू कहने जैसी थी. ट्रेन में चढ़ते समय हम दूसरे डिब्बे में बैठे ताकि भाभी जी को सहूलियत रहे और उन्हें फिर घूंघट निकालने की नौबत न आए. दीन दयाल ट्रेन में बिठाकर वापस गांव लौट गये थे.

उन्हीं दिनों मेरी आईटीबीपी तैनाती हुई थी. मैं भी अपनी नौकरी में रम गया. मैं जब भी गांव आता, डाक्टर साहब से मिलता ; पर भाभी जी से मिलना तो आकाश कुसुम था. वे पर्दा नशीं थीं पर्दानशीं हीं रहीं. यही हाल मेरी श्रीमती जी के भी साथ रहा. डाक्टर साहब ने भी इन्हें नहीं देखा था. हम दोनों की श्रीमतियां भी कभी एक दूजे से नहीं मिलीं. कितनी बड़ी विडम्बना है कि एक गांव के होते हुए भी हम एक दूजे के शरीक ए हयात से नवाकिफ थे. ये शरीक ए हयात भी एक दूसरे से अंजान हीं रहीं.

इसे भी पढ़ें – जब नाच में फरमाइशी गीत के लिए दोकटी में होने लगी ताबड़तोड़ फायरिंग

वे फोन पर भी घूंघट ओढ़ लेती थीं
बाद के दिनों में हमारा सम्पर्क एक दूजे से टूट गया था. भाभी जी भदोहीं के किसी स्कूल में पढ़ाने लगीं थीं. डाक्टर साहब हिमाचल प्रदेश में नौकरी करने चले गये थे. काल का पहिया फिर घूमा. ये दोनों फिर बलिया आ गये. डाक्टर साहब ने अब बलिया में क्लीनिक खोल दिया था. भाभी जी की भी यहीं नौकरी मिल गयी थी. मेरी भी यदा कदा इनसे टेलिफोन पर बात होने लगी थी. कभी फोन भाभी जी उठातीं तो मुझे लगता कि वे फोन पर भी घूंघट ओढ़ लेती थीं. ऐसा होता है. हम भी कभी कभार अपने सीनियर का फोन आ जाने पर फोन पर हीं अटेंशन हो जाते थे. कई बार हाथ अपने आप सैल्यूट की मुद्रा में माथे पर चले जाते थे. भाभी जी को फोन पर भी मुझसे बात करने में गुरेज था. वे फोन पर भी छुई मुई बनी रहतीं.

बलिया वाले इनके घर में 2012 में जाना हुआ. मैं अपने छोटे बेटे के लिए लड़की पसंद करने गया था. खुद उसमें डाक्टर साहब अगुआ की भूमिका में थे. डाक्टर साहब के बैठक में बैठा मेरा मन बल्लियों उछल रहा था. मैं सोच रहा था कि आज पर्दानशीं को बेपर्दा करने का अवसर आ गया है, लेकिन मेरी इस इच्छा पर उस समय तुषारापात हो गया जब डाक्टर साहब खुद चाय की ट्रे लेकर पधारे. हमने अपना विरोध जताया. चाय तो भाभी जी को लाना चाहिए था. डाक्टर साहब ने नपा तुला एक हीं वाक्य कहा -” ऊ तहरा से लजा तारी.” मुझे उस समय एक फिल्मी गाना याद आ गया -” कहो ना आस निरास भई.” पूरे रास्ते मैं और मेरा ममेरा भाई इस पोंगा पंथी को कोसते गए.

इसे भी पढ़ें – जब विनय तिवारी व अवध विहारी चौबे की जोड़ी दिखी तो मन टेहूं टेहूं चिल्ला उठा

आज मैं फेसबुक पर 2014 से हूं. मैं और मेरी श्रीमती जी ताज महल के प्रांगण में बैठे अपना फोटो बहुत पहले शेयर कर चुके हैं. डाक्टर साहब भी मेरी श्रीमती जी का यह फोटो देख चुके हैं. भाभी जी ने भी देखा होगा. अब इतने वर्षों बाद डाक्टर साहब ने वाट्सप पर अपना फोटो पत्नी के साथ शेयर किया है. हैरान हूं कि 16/9/2018 का यह फोटो आज 19 /9 / 2018 को देख पाया हूं. यहां भी मैं तीन दिन से चूक गया. खैर , देर आयद दुरुस्त आयद. आज फोटो देखा. कल को भाभी जी का साक्षात् दर्शन भी हो सकता है. उम्मीद पर हीं दुनिया टिकी है. भाभी जी का बहुत बहुत शुक्रिया.
शुक्रिया है हुजूर आने का,
वक्त जागा गरीबखाने का.

(लेखक के फेसबुक वाल से)