जब विनय तिवारी व अवध विहारी चौबे की जोड़ी दिखी तो मन टेहूं टेहूं चिल्ला उठा

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आज कालेज में क्या हुआ ? ,पुरब पश्चिम एक हुआ.ई. एसडी ओझा 

पीडी इंटर कॉलेज, गायघाट से फारिग हो सतीश चन्द्र डिग्री कालेज, बलिया में हमने जब दाखिला लिया तो ड्रास्टिक चेंज महसूस हुआ. यहां गायघाट के प्रिंसिपल राम लखन कुंवर के आतंक का कहीं दूर दूर तक नामोनिशां नहीं था. पास में हीं ‘शीशमहल ‘ पिक्चर हाल था .जब मर्जी आए . क्लास बंक कीजिए और पहुंच जाइए हाल के अंदर. ढाई से तीन घंटे का मनोरंजन कर चुका आप अलौकिक दुनियाँ में पहुंच जाएं . न कोई रोकने वाला, न कोई टोकने वाला. ‘अपने मन के राजा तुम , छेड़ो दिल का बाजा तुम ‘ की तर्ज पर आप उत्पात किए जाओ.

सतीश चन्द्र डिग्री कालेज के प्रिंसिपल थे -पारस नाथ मिश्र . बेचारे बहुत भले आदमी. जब भी कालेज में छात्र संघ का चुनाव होता . उनकी शामत आ जाती. सारे पक्ष विपक्ष से नारे लगते – पारस के बबुआ, हाय हाय. यह नारा भी लगता -प्रिंसिपल के दलालों को एक धक्का और दो. बिजन व वीरेश (इंटर के मेरे साथी ) चौबे छपरा गांव के दो महावीर थे, जो बढ़ चढ़कर हर गतिविधि में हिस्सा लेते. उन दिनों छात्र संघ के चुनाव में अध्यक्ष पद हेतु रमेश सिंह और सत्येन्द्र राय में कांटे का टक्कर था. सत्येन्द्र राय अच्छे वक्ता थे, पर वे बलिया पश्चिम से आते थे. रमेश सिंह अच्छे वक्ता नहीं थे, पर बलिया पूर्व के थे. इसलिए हम पूरब वालों का समर्थन रमेश सिंह को था. रमेश सिंह शेरो शायरी बहुत करते थे. उनका एक शेर मुझे अब भी याद है –

किसी मजलूम को हक ,
दिला देना अगर बगावत है,
तो बागी हूं,
बगावत काम है मेरा,
मिटा दूं जुल्म की हस्ती,
यही पैगाम है मेरा.

पूरब व पश्चिम के नाम पर उन दिनों क्षेत्रीयता पूरे उफान पर थी. हमारे पूरब के भूतपूर्व अध्यक्ष विनय तिवारी और उनके गुरु अवध विहारी चौबे भी सतीश चन्द्र डिग्री कालेज में बड़ी कक्षाओं में पढ़ रहे थे. उन दिनों ऐसी मान्यता थी कि ये दोनों जिसे चाह दें, वही अध्यक्ष बनेगा. यही कारण था कि लगातार कई सालों तक बलिया के इस कालेज से इनके द्वारा समर्थित कैन्डिडेट हीं चुना जाता रहा. बाद के दिनों में पढ़ाई पूरी होने के बाद भी विनय तिवारी हर साल छात्रसंघ के चुनाव के समय सतीश चन्द्र डिग्री कालेज में जरूर आते और नारा लगता –

हमारा नेता कैसा हो?
विनय तिवारी जैसा हो.

पूरे 38 सालों बाद , विनय तिवारी व अवध विहारी चौबे की जोड़ी मेरे छोटे बेटे की शादी में जब मुझे इकट्ठी नजर आई तो मन टेहूं टेहूं चिल्ला उठा.

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बलिया में दो और डिग्री कॉलेज थे. एक टाउन डिग्री कालेज तथा दूसरा वीर कुंवर सिंह डिग्री कालेज. जिस साल पूरब के रमेश सिंह सतीश चन्द्र डिग्री कालेज से जीते, उसी साल टाउन डिग्री कालेज से कोई पश्चिम का कैन्डिडेट जीता. सतीशचन्द्र डिग्री कालेज को संक्षेप में S C कालेज और टाउन डिग्री कालेज को T D कालेज कहा जाता था. टाउन डिग्री कालेज में नारा लगा था –
‘SC का बदला T D से. ‘

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कुंवर सिंह डिग्री कॉलेज से कोई सर्वमान्य नेता, जो पूरब और पश्चिम दोनों का चहेता था, जीता. वहां यह नारा लगा –

आज कालेज में क्या हुआ?
पूरब पश्चिम एक हुआ.

सन् 1857 के गदर में पूरे भारत के लिए लड़ने वाले बाबू वीर कुंवर सिंह ने एक बार फिर क्षेत्रीयता धराशाई कर दी थी.

(लेखक के फेसबुक वाल से)