जब नाच में फरमाइशी गीत के लिए दोकटी में होने लगी ताबड़तोड़ फायरिंग

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सांझे बोले चिरई बिहाने बोले मोरवा ……
मुरार बाबा के नाम पर पड़ा था मुरारपट्टी गांव का नाम
ई. एसडी ओझा 

मुरारपट्टी गांव का नाम मुरार बाबा के नाम पर पड़ा था. मुरार बाबा यहां आकर बस गए थे. उन्हीं से आज हमारे गांव की पाठक लोगों की आबादी 300 घर तक पहुंची है. कहने को तो तिवारी लोग भी हैं इस गांव में, लेकिन मुरारपट्टी गांव की पहचान पाठक लोगों के कारण हीं है. मुरारपट्टी से एक फर्लांग की दूरी पर है लालगंज. लालगंज बाजार है, जहां से सऊदा पताई होती है. अब लालगंज बहुत बड़ा बाजार बन गया है. यहां सुई से लेकर फार तक सब कुछ मिल जाता है. हमें रानीगंज बाजार जाने की जरूरत नहीं पड़ती. इसी बाजार में चण्डीगढ़ से जाने पर मेरी महफिल जमती. हित मीत सभी इकट्ठे होते. गांव के लड़के मेरे पीछे पड़कर चाय समोसा जलेबी का आर्डर दिलवाते. छक कर खाते. शाम को चलते समय मैं दूकानदार को भुगतान कर देता.

लालगंज के करीब हीं धोबियों का एक टोला जैसा है. वहीं से हमने जवानी के दिनों में गधे चुराये थे. गधे चुराने का आइडिया बेगदू तिवारी का था. दरअसल हमें नाच देखने दोकटी जाना था. हमने सब इंतजाम कर लिया था. चारपाई पर उपले रख हमने उन पर चादर डाल दिए थे ताकि लगे कि हम लोग उन पर सोए हैं. घर वालों को पता नहीं लगता कि हम नाच देखने गए हैं. दोकटी मुरारपट्टी से 3/4 किलोमीटर दूर था. इसलिए बेगदू तिवारी की सलाह हमने मान ली. गधों को पकड़ा गया. सवारी की गई. फिर चल पड़े नाच देखने. गधे भी बहुत सभ्य, शालीन, सुसंस्कृत व आज्ञाकारी थे. वे बिना चीं चापड़ किए चलते रहे. जब डोकटी नजदीक आया तो हमें ट्यूब लाइट की रोशनी दिखी. हमने पहली बार ट्यूब लाइट देखी थी. हमारे आस पास के किसी गांव में विजली नहीं थी. ढिबरी , लालटेन से हमारा काम चलता था. ट्यूब लाइट जेनरेटर से जल रहे थे. हम जाकर शामियाने में जगह रोककर बैठ गये. गधे चरने के लिए छोड़ दिए गए.

नाच सुमेर सिंह का था. सुमेर सिंह की नाच मण्डली उन दिनों भिखारी ठाकुर, महेंदर मिसिर, मुकुंदी भाड़ और चाई ओझा के नाच मण्डली के समकक्ष मानी जाती थी. नाच में एक बाई जी थीं, जिन्हें लोग प्यार से चुनमुनिया कहते थे. कहते हैं कि जब तक फायरिंग से शामियाना मच्छरदानी न बन जाए तब तक चुनमुनिया के नाच को नाच नहीं माना जाता था. पहले छोटे किस्म के दो चार लौंडे नाचे. उसके बाद चुनमुनिया का नाच शुरू हुआ. चुनमुनिया ने पहला गीत गाया था – सांझे बोले चिरई, बिहाने बोले मोरवा, कोरवा छोड़ि द बलमू …. समां बंध गया. मन मयूर नाच उठा. चुनमुनिया का नाचना सुफल हुआ. खूब तालियां बजीं. अब बारी आई खुद सुमेर सिंह की. सुमेर सिंह बीए पास थे. उनका नाच बेजोड़ था. वह थाली के किनारी पर बखूबी नाच लेते थे. जब वे नाचने को उद्दत हुए तभी दोकटी के नामी गिरामी तेजन सिंह की धमाकेदार इण्ट्री हुई.

तेजन सिंह दोकटी के थे, पर उनका दबदबा पूरे जवार में था. बताया जाता है कि वे बिहार में डकैती डालकर यूपी में भाग के आ जाते थे. बिहार पुलिस उन्हें ढूंढती रह जाती थी. शामियाने में पहुंचते हीं उन्होंने अपना मनपसंद गीत ” साझे बोले चिरई , बिहाने बोले मोरवा….” गाने की फरमाइश की. सुमेर सिंह ने कहा कि यह गीत हो चुका है. आप दो चार गीत दुसरे सुनें. फिर मैं आपको यह गीत भी सुना दूंगा. सुमेर सिंह का यह उसूल था कि वे पहले अपनी मनपसंद सुनाते थे, फिर जनता की पसंद सुनाते थे. तेजन सिंह को इसमें अपना अपमान महसूस हुआ. उन्होंने अपनी राइफल की नली सुमेर सिंह की तरफ कर दी. सुमेर सिंह भी राजपूत थे. उनका खून भी उबलने लगा. सुमेर सिंह ने भी साड़ी में छुपाकर रखी पिस्तौल निकाल ली. जब कांटे की टक्कर होती है तो कोई कुछ नहीं कर पाता. किसी ने भी किसी पर गोली नहीं चलाई. दोनों पक्ष से हवाई फायर होने लगे. शामियाना मच्छरदानी बनने लगा. सब भागे. हम भी गिरते पड़ते भागे. जेनरेटर वाले ने जेनरेटर बंद कर दिया. घुप्प अंधेरा छा गया. हम बबुरानी में जा फंसे. बबूल के कांटे हमारे पूरे शरीर में विंध गए. किसी तरह हम भागकर गांव पहुंचे.

इसी भागमभाग में गधे वहीं छूट गये थे.

(लेखक के फेसबुक वाल से, तस्वीर प्रतीकात्मक)