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बैरिया (बलिया)। क्या देश की सबसे बड़ी त्रासदी है आरक्षण? आरक्षण विरोधियों की माने तो अयोग्य व्यक्ति जब ऊँचे पदो पर पहुँच जाते है तो ना समाज का भला होता है और ना ही देश का और सही बात तो यह है कि आरक्षण जैसी चीजें मूल जरूरतमंदों के पास तक तो पहुँच ही नही पाती. बस कुछ मलाई खाने वाले लोग इसका फायदा उठाते है. आरक्षण जैसी सहूलियतें चाहे वो गरीबी उन्मूलन हो या सरकारी राशन कि दुकानें. सब जेब भरने का धंधा है और कुछ नहीं. 1950 में संविधान लिखा गया और आज तक आरक्षण लागू है. बाबा साहब अंबेडकर ने भी इसे कुछ समय के लिए लागू किया था. अंबेडकर जानते थे कि यह आरक्षण बाद में नासूर बन सकता है. इसलिए उन्होंने इसे कुछ वर्षो के लिए लागू किया था, जिससे कुछ पिछड़े हुए लोग समान धारा में आ सके. सच्चाई तो यह है कि पूँजी की सर्वग्रासी मार ने सवर्ण जातियों की एक भारी आबादी को भी सर्वहारा, अर्द्ध सर्वहारा और परेशानहाल आम निम्न-मध्य वर्ग की क़तारों में धकेल दिया है, ऐसे में आरक्षण विरोधियों की आवाज अब मुखर होती जा रही है. इस आरक्षण नीति पर ओमान की राजधानी व सबसे बड़े शहर मस्कट में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत कुछ युवाओं के विचार –
बलिया के धतुरीटोला गांव के मूल निवासी राघवेन्द्र प्रताप सिंह ओमान की राजधानी मस्कट में वोल्टेम मल्टीनेशनल कम्पनी के असिस्टेंट मैनेजर हैं. राघवेंद्र प्रताप कहते है कि आरक्षण न्यायसंगत नही है. भारत की सरकारी व्यवस्था जातीय आरक्षण की जंजीर में जकड़ी हुई है. आरक्षण के कारण भारत में प्रतिभा की कद्र नही हैं. एक तरफ 90% अंक प्राप्त करने वाला व्यक्ति बेरोजगार है, वही 40% अंक प्राप्त करने वाला एक अच्छे पद पर पहुँच जाता है. यह व्यवस्था न्यायसंगत नहीं है, जिसको आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए, उसे आज भी नहीं मिल रहा है. आरक्षण का लाभ वही ले रहा है, जिस की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गई है. आरक्षण का प्रावधान भारतीय संविधान में इसलिए था की पिछड़े वर्ग को आगे लाये जा सके, लेकिन ये आज अप्रासंगिक हो गया है. इस आरक्षण नीति पर हमारे बुद्धिजीव वर्ग, जन नेता और सरकार को विचार करना चाहिए ताकि यह व्यस्था न्यायसंगत बन सके, अन्यथा जातीय आरक्षण के चलते आने वाले दिनों में विद्रोह की स्थिति बन सकती है. आरक्षण जातीय आधार पर तो होना ही नहीं चाहिए. आरक्षण पूरी तरह से आर्थिक स्थिति पर होना चाहिए. अभी देखें बहुत से लोग जो की करोड़पति हैं, फिर भी वह आरक्षण का लाभ ले रहे हैं, जो कि सर्वथा अनुचित है. हमें इस आरक्षण नीति पर विचार करनी चाहिये.