भक्ति व श्रद्धा से ही ईश प्राप्ति सम्भव- राधेश्याम शास्त्री

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टाउन हॉल में चल रही सात दिवसीय श्रीमदभागवत कथा का पांचवा दिन

बलिया। शहर के टाउन हॉल में चल रही सात दिवसीय श्रीमदभागवत कथा के पांचवे दिन पंडित राधेश्याम जी शास्त्री ने भगवान श्रीकृष्ण की लीला एवं छप्पन भोग के प्रसंगों को कथा के माध्यम से प्रस्तुत किया. कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रत्येक रूप मनोहारी है. उनका बालस्वरूप तो इतना मनमोहक है कि वह बचपन का एक आदर्श बन गया है. इसीलिए जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के इसी रूप की पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें वे चुराकर माखन खाते हैं. गोपियों की मटकी तोड़ते हैं, और खेल-खेल में असुरों का सफाया भी कर देते हैं. इसी प्रकार उनकी रासलीला, गोपियों के प्रति प्रेम वाला स्वरूप भी मनमोहक है. अपनी लीलाओं में वे माखनचोर हैं, अर्जुन के भ्रांति-विदारक हैं. गरीब सुदामा के परम मित्र हैं, द्रौपदी के रक्षक हैं, राधाजी के प्राणप्रिय हैं, इंद्र का मान भंग करने वाले गोवर्धनधारी है. उनके सभी रूप और उनके सभी कार्य उनकी लीलाएं हैं.

उनकी लीलाएं इतनी बहुआयामी हैं कि उन्हें सनातन ग्रंथों में लीलापुरुषोत्तम कहा गया है. श्रीकृष्ण लीला के साथ ही गोवर्धन लीला और छप्पन भोग का भव्य आयोजन भी कथा में हुआ. जिसमें श्री गिरिराज महाराज का पूजन कराया, छप्पन भोग लगाया, श्री गोवर्धन नाथ की सुंदर झांकी का दर्शन कराया. श्रीकृष्ण ने गौवर्धन की पूजा करके इद्र का मान मर्दन किया. भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने का साधन गौ सेवा है. श्रीकृष्ण ने गो को अपना अराध्य मानते हुए पूजा एवं सेवा की. गो सेवक कभी निर्धन नहीं होता. श्रीमद्भागवत कथा साक्षात भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन है. यह कथा भवसागर से पार लगाती हैं. परमात्मा को केवल भक्ति और श्रद्धा से पाया जा सकता है. कथा के दौरान कृष्ण जन्मोत्सव की भव्य झांकी का मंचन हुआ. जिसमें वासुदेव द्वारा बाल कृष्ण को मथुरा नंद बाबा के यहां पहुंचाया. पूरा पंडाल भगवान कृष्ण के आगमन पर “नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की ” पर झूम उठा, इस खुशी में माखन मिश्री, खिलौने, मिष्ठान भक्तो में वितरण हुआ.