जॉर्ज पंचम की ताजपोशी के विरोध में निकला महावीरी झंडा जुलूस

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बलिया लाइव ब्यूरो

शिवकुमार सिंह कौशिकेय
शिवकुमार सिंह कौशिकेय

बलिया। जंगे आजादी में युवाओं के योगदान, छात्र शक्ति राष्ट्र शक्ति की बानगी है बलिया का महावीरी झंडा जुलूस. ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर पांडुलिपि संरक्षण मिशन के जिला समन्वयक शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि ब्रितानी गुलामी के अमंगल को मिटाने के लिए प्रथम बलिदानी मंगल पांडेय की धरती पर उनकी बगावत के 52 साल बाद जॉर्ज पंचम की ताजपोशी के विरोध में महावीरी झंडा जुलूस की शुरुआत हुई थी. यह भी एक सर्वमान्य तथ्य है कि लोकमान्य तिलक के सम्मान में बलिया का महावीरी झंडा जुलूस शुरू हुआ था.

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पहले जुलूस में महावीरी झंडे पर बंदे मातरम लिखा था

पहला महावीरी झंडा श्री आदित्य राम मंदिर से निकला, जिसमें लंबे बांस में लाल रंग की महावीरी झंडे पर बंदेमातरम लिखा हुआ था. इसी को लेकर छात्रों ने जय महावीर जी एवं तिलक महाराज की जय का नारा लगाते हुए शहर में घुमाया. सभी छात्रों को अंग्रेज कलेक्टर मिस्टर जैकलिन ने स्कूल से बाहर निकलवा दिया. जिससे यह झंडा ब्रिटिश शासन के विरोध का हथियार बन गया. इस बगावत को रोकने के लिए ब्रिटिश मूल के एसपी मिस्टर रखो ने एक साजिश रची. उसने डिप्टी कलेक्टर मोहम्मद निजामुद्दीन के माध्यम से मुस्लिम समुदाय को जुलूस के विरुद्ध भड़काने को कहा. देशभक्त निजामुद्दीन ने झंडा जुलूस के सूत्रधार ठाकुर जगन्नाथ सिंह को बलिया से बाहर भेज दिया. एसपी की साजिश नाकाम हो गई.

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हिंदू मुस्लिम के बीच दरार पैदा करने की कोशिश की गई

कुछ समय बाद शहर के युवा व्यापारियों ने आर्य समाज के नेता पंडित रघुनाथ शर्मा के नेतृत्व में इस परंपरा को जीवित कर दिया. श्री कौशिकेय बताते हैं कि झांकियों वाले महावीरी झंडे की शुरुआत 1927 में हुई. हनुमानगढ़ी मंदिर से पालकी में हनुमान जी की मूर्ति रखकर जुलूस निकला. 1930 में अंग्रेजों ने फिर इसे रोकने का प्रयास किया, जिसका न्यायालय में मुकदमा चला. इसकी पैरवी बाबू मुरलीमनोहर ने किया. निर्णय झंडा जुलूस के पक्ष में आया.

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बीते 112 साल के इतिहास को समेटे हुए है यह परंपरा

दूसरी बार 1962 ईस्वी में इसे रोकने के लिए विष्णुपुर चौराहे पर अराजक तत्वों से पथराव कराया गया. अफसरों ने गोली चलवाया, जिसमें सिनेमा रोड के केदार नोनिया मारे गए. जुलूस में शामिल सैकड़ों लोग घायल हुए थे. 1990 में एसडीएम राजीव कपूर की नासमझी के चलते बाधा आई. ठीक इसी तरह 2005 में भी अवरोध उत्पन्न हुआ. मगर सारी बाधाओं को पार कर बीते 112 सालों से जंगे आजादी के संघर्षों के इतिहास समेटे हुए यह परंपरा उसी जोशोखरोश कायम है यही बहुत बड़ी बात है.

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