खेतों में बस गया अस्थायी आधुनिक नगर, धनुष यज्ञ मेला शुरू

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बैरिया (बलिया)। पूर्वी उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी बिहार के ग्रामीण अंचलों में चर्चित सुविख्यात संत सुदिष्ट बाबा के आश्रम पर लगने वाला धनुष यज्ञ मेला गुरुवार से शुरू हो रहा है. लगभग 3 सप्ताह तक चलने वाले इस मेले की सारी तैयारियां पूर्ण हो चुकी हैं. रानीगंज बाजार से पूरब कोटवा गांव के किनारे संत सुदिष्ट बाबा के आश्रम (सुदिष्टपुरी) पर प्रत्येक वर्ष अगहन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से धनुष यज्ञ मेला प्रारंभ होता है. यह मेला 23 नवंबर से शुरू होकर 28 दिसंबर तक चलेगा.

 मेले की खासियत यह है यहां हर अलग-अलग तरह के वस्तुओं के लिए अलग-अलग कतारों में दुकानें सजती हैं. बीच में चौक स्थापित किया जाता है. जहां धर्म ध्वज लगाकर विधिवत पूजन अर्चन के साथ मेले का शुभारंभ होता है. ग्राम पंचायत कोटवां द्वारा लगाए जाने वाले इस मेले को खास नक्शे के अनुसार लगाया जाता है. जिससे मेला क्षेत्र सड़कों, गलियों, चौराहों से युक्त एक सुंदर ढंग से बसे आधुनिक नगर का स्वरूप ले लेता है. पास-पड़ोस जनपदों के लोग भी इस मेले में आते हैं. मेला प्रबंधन इस साल मेले में आने वाले दर्शनार्थियों और मेला प्रेमियों की भीड़ का आकलन एक लाख के लगभग कर रही है. संत सुदिष्ट बाबा के दर्शन अर्चन के अलावा मेले में आने वाले लोग खरीद-बिक्री भी करते हैं. 

बताते हैं कि मेले का जो स्वरूप आजकल है, प्रारंभिक दिनों में ऐसा नहीं था. यद्यपि कि आज भी दूर दूर से संत महात्मा इस मेले में आते हैं, और सुदिष्ट बाबा की समाधि के सामने नतमस्तक होकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. एक-दो दिन ठहर कर अपने-अपने स्थान को वापस लौट जाते हैं. संतों का यह जमघट ही इस मेले का प्रारंभ रहा है. बताते हैं कि संत सुदिष्ट बाबा रामायण एवं महाभारत की कथा में विशेष रूचि लेते थे. यह मेला भी उन रुचियों का ही प्रतिफल है. प्रत्येक वर्ष अगहन मास के कृष्ण पक्ष एकादशी को बाबाजी 18 पुराणों की कथा आरंभ कराते थे. आश्रम के शिवालय के इर्द-गिर्द 18 वेदिकाएं बनाई जाती थी. जिस पर पूर्ण निष्ठा के साथ 18 विप्र कथा बचने के लिए बैठते थे. इसी के साथ ही काशी से रामलीला मंडली बुलाई जाती थी. रात में रामलीला होता था. अगहन शुक्ल पंचमी को धनुष यज्ञ का दृश्य प्रस्तुत किया जाता था. इस अवसर पर सुदिष्ट बाबा देश के कोने-कोने से संतो को निमंत्रित करते थे. इस अवसर पर रामलीला में राम एवं सीता की भूमिका निभाने वाले पात्र अविवाहित लड़के और लड़की होते थे. बाबा के आश्रम पर ही धनुष भंग के बाद उनका विवाह करा दिया जाता था. इस अवसर पर क्षेत्र के प्रतिष्ठित लोग विशेष रुप से हाथी घोड़े पर सवार होकर बाबा जी के आश्रम पर आते थे. जिस प्रकार अयोध्या से बारात चलकर जनकपुर पहुंची थी, उसी प्रकार का दृश्य उपस्थित किया जाता था. समयचक्र के साथ ही मेले का स्वरूप बदलता गया. लेकिन परंपरा अब भी कायम है. इस मेले में पश्चिमी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से मेला प्रेमी और सुदिष्ट बाबा की समाधि के दर्शनार्थी आते हैं. दूर दूर से आने वाले लोग एक दिन पहले ही पहुंच जाते हैं, और यहां रात्रि विश्राम कर सुबह सुदिष्ट बाबा का दर्शन कर मेले में सब्जी जलेबी का आनंद लेते हैं. मेले से खरीददारी भी करते हैं. लंबे समय तक चलने वाले इस मेले का स्वरूप अब आधुनिक हो गया है. ग्राम पंचायत कोटवा द्वारा लगाए जाने वाले इस मेले में स्वच्छता, पेयजल, सुरक्षा, प्रकाश आदि की व्यवस्था मेला प्रबंधन द्वारा की जाती है. मेला प्रबंध समिति के पूर्व प्रधान गौरी शंकर प्रसाद ने बताया कि सारी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं. पर्याप्त हैंड पाइप और जनरेटर लगवा दिया गया है. मेले में आने वाले लोगों के लिए सबसे ज्यादा दिक्कत शौचालय को लेकर होती थी. ऐसे में मेले में आने वाले साधु महात्माओं के लिए दो स्थाई शौचालय, महिलाओं के लिए चार अस्थाई शौचालय और पुरुषों के लिए 12 अस्थाई शौचालय बनाया गया है. सुरक्षा के लिए मेले में थाना मीना बाजार स्थापित है. अन्य भी मेले पर चौकशी रखने के लिए ग्राम पंचायत के सदस्य हमेशा तत्पर हैं.