​आत्महत्या नहीं है समस्या का समाधान, खुद में विकसित करें सकारात्मक सोच

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.

महाभारत के रण क्षेत्र में अर्जुन भी निराश और उदास हुए थे. पांव कांपने लगे थे. धनुष-बाण हाथ से गिर गया था. उस वक्त श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया और सहारा दिया. फिर युद्ध के लिए तैयार किया. इसलिए कृष्ण सरीखा साथी खोजें 

इलाहाबाद। आत्महत्या नया शब्द नहीं है. यह सदियों से है. लेकिन आज समस्या इस बात की है कि युवा वर्ग  खुदकुशी कर रहा है. इसलिए हमारे समाज, चिंतकों, मनीषियों और राजनीतिकों के सोच का बहुत बड़ा विषय बन गया है. क्योंकि किसी समाज का विकास वहां के यूथ की सोच से होता है. लेकिन ताज्जुब इस बात की है कि सामान्य जुकाम की तरह भावनाओं की जुकाम से पीड़ित होकर युवा आत्महत्या की तरफ बढ़ रहा है. पहले वह व्यक्ति आत्महत्या करता था जिस पर कोई कलंक (बलात्कार, चोरी आदि का आरोप) लग गया हो लेकिन अब वो कलंक सामाजिक बदलाव के कारण स्टेटस सिंबल बन गया है और वह इसका राजनीतिक फायदा उठाता है, आत्महत्या नहीं करता. 

आत्महत्या, इसके कारण और निवारण पर उत्तर प्रदेश मनोविज्ञान शाला, इलाहाबाद के मनोवैज्ञानिक डॉ. कमलेश तिवारी ने ” बनारस लाइव ” के राजनीतिक संपादक आलोक श्रीवास्तव से विस्तारपूर्वक बात की. 

केस एक-

कुछ महीने पहले बिहार के आईएएस अधिकारी और बक्सर के जिलाधिकारी ने गाजियाबाद के पास ट्रेन से कटकर जान दे दी. किसी के भी दिमाग में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ऐसा व्यक्ति जिसके पास पद, प्रतिष्ठा और धन की कमी नहीं थी, इसके बाद भी खुदकुशी क्यों की ?

केस दो –

अभी हाल में इलाहाबाद के ट्रिपल आईटी में फेलोशिप के रूप में कार्यरत एक छात्र ने आत्महत्या कर ली. पत्नी भी फिजिक्स से एमएससी थी. देश की जानीमानी संस्था में फेलोशिप और पत्नी का भी एमएससी होना असाधारण योग्यता है. ऐसी योग्यता का व्यक्ति बेरोजगार नहीं रह सकता. फिर आत्महत्या क्यों ? 

केस तीन-

सिविल सेवा, मेडिकल, इंजीनियरिंग, सेना और अन्य सेवाओं में जाने के इच्छुक छात्र भी आत्महत्या कर ले रहे हैं. क्यों ? क्या सिर्फ इन सेवाओं के लिए सफल होना ही एकमात्र लक्ष्य है ? अंधे, लुलहे, लँगड़े, गरीब आदि भी इस दुनिया में मेहनत कर जीवन को जी रहे हैं और सफल भी हैं, फिर ये सक्षम लोग क्यों कर रहे हैं आत्महत्या ? 

इन्हें भी समझें

अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अपने बेटे को भेजे पत्र में लिखा था- हारने में भी आनंद की अनुभूति करो. जीतो तो मुझे खुशी होगी. 

अमेरिका के प्रख्यात वैज्ञानिक, जिन्होंने कई आविष्कार किए, जिसमें एक बल्ब भी है. कहा जाता है कि एकबार उनके घर में आग लग गई. बचाव का कोई उपाय न था. उन्होंने पत्नी और बच्चों से कहा -इस शानदार दृश्य का आनंद लो, क्योंकि यह दृश्य फिर कभी नहीं दिखेगा. 

दुनिया में ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे, जिन्होंने अपने सकारात्मक सोच से न सिर्फ सभी समस्याओं पर विजय प्राप्त की बल्कि अपने लक्ष्य को भी हासिल किया. 

क्या हैं कारण

माहौल: यदि परिवार का वातावरण घुटन भरा हो . पति-पत्नी, माता-पिता, पिता-पुत्र आदि में तनाव हो. विश्वास का माहौल समाप्त हो गया हो. 

दबाव : एक ही डोमेन्स ( लक्ष्य ) की ओर अभिभावकों का दबाव. अभिभावक सिर्फ यही कहते रहते हैं कि पढ़ो, सिर्फ पढ़ो.  कक्षा में अच्छा नम्बर लाओ. माता-पिता जिसे खुद पूरा नहीं कर पाए होते हैं, बच्चों से उसकी इच्छा करते हैं, भले ही वह बच्चों का पसंदीदा विषय न हो. बच्चों की रुचि की ओर ध्यान नहीं देते.

समायोजन का अभाव : बड़े लोग परिवार और समाज से समायोजन स्थापित नहीं कर पाते. बच्चों के मामले में अभिभावक सिर्फ पढ़ाई पर जोर देते हैं. इस कारण खेलकूद, स्कूल की अन्य प्रतियोगिता में बच्चे भाग नहीं ले पाते, जबकि पढ़ाई के अलावा इनमें भाग लेना जीवन में सबके साथ समायोजन स्थापित करने के लिए जरूरी है.

सहनशक्ति की कमी : मनमुताबिक काम न होने पर छोटी-छोटी बातों पर नाराज हो जाना और उसके बाद घातक कदम उठा लेना. सहनशक्ति की कमी का ही नतीजा होता है कि हम भविष्य की ओर नहीं देखते और परिवार को संकट में डाल देते हैं.

उपरोक्त कमियों के कारण युवाओं में 
निम्न लक्षण दिखाई देने लगते हैं–

चिड़चिड़ापन, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा, अपने को अकेला महसूस करना, नकारात्मक सोच की अधिकता, समाज में खुद को स्थापित न कर पाने के कारण मानसिक बीमारी के चपेट में आ जाना और विचार शून्यता. ऐसा लगता है सभी लोग उसकी आलोचना कर रहे हैं. बदलाव से लगातार डरता है. जमीनी हकीकत से दूर हो जाता है. कभी भी अपना लक्ष्य नहीं बना पाता है. हर वक्त गुस्से में रहता है. स्थित यहां तक आ जाती है कि असफलता का श्रेय खुद को देकर अपने आप को धिक्कारता भी है और सबसे छुटकारा के लिए खुदकुशी आसान रास्ता दिखता है.

कैसे पहचानें
कोई व्यक्ति अचानक गुमसुम रहने लगे, लोगों से कट कर रहने लगे, चेहरे से हंसी गायब हो जाए, छोटी-छोटी बातों पर रोने लगे, अपना निजी काम और पढ़ाई में मन न लगाए, लोगों से बहकी-बहकी बातें करें, घर छोड़ के भाग जाने की इच्छा हो, सांसारिक बातों में मन न लगे आदि-आदि. 

आत्महत्या के विचार के आधार पर निम्न प्रकार के लोग आत्महत्या कर रहे हैं- 
1- क्यूक रिस्पांसर (जल्दी निर्णय लेने वाले) – आज के बच्चे और युवा अपनी आवश्यकताओं को तुरंत पूरा करना चाहते हैं या मनवाना चाहते हैं. छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करते हैं और विवेक का इस्तेमाल किए बगैर जल्दबाजी में निर्णय लेते हैं. जैसे- नदी में या बिल्डिंग से कूदना, खुद को गोली मार लेना या जहरीली दवा खा लेना. ऐसे लोगों को किसी तरह डॉक्टर तक पहुंचाया जाता है तो वे डॉक्टर से जिंदगी की भीख मांगते हैं, कहते हैं डॉक्टर साहब बचा लीजिये, लेकिन तबतक सब कुछ समाप्त हो चुका होता है. पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाता. ऐसे लोगों में प्रेमी जोड़े , प्रतियोगी परीक्षा में सफल न हो पाने पर छात्र आदि आ सकते हैं. 

2- प्लान वेभ में (पूरी तरह तैयारी करके) – ऐसे लोग दो प्रकार के होते हैं –

A- बदले की भावना से- कुछ लोग गुस्से में इस सोच के साथ आत्महत्या कर लेते हैं कि मेरे मरने के बाद तुम्हें पता चलेगा. जब मैं मर जाऊंगा तब तुम लोग मुझे समझोगे. जैसे घर और नौकरी में समायोजन स्थापित न कर पाना, क्योंकि नौकरी के कारण तमाम अड़चनें आती हैं, घर को समय नहीं दे पाते और घर वाले भी इस दिक्कत को नहीं समझते हैं. परिणाम होता है कि व्यक्ति आत्महत्या के विषय में सोचने लगता है.

B- दबाव में आकर -इसलिए कि कुछ लोग मेरे पीछे पड़े हैं. इसलिए यदि मर जाऊंगा तब पता लगेगा. ऐसे लोग ज्यादातर शंकालु प्रवृति के होते हैं. इनको लगता है कि लोग मेरे विषय में हमेशा पता करते रहते हैं. 

प्लानवेभ में आत्महत्या करने वाले खुदकुशी के तरीकों को लेकर काफी विचार करते हैं और फिर कदम उठाते हैं. बक्सर के डीएम रहे युवा का आत्महत्या करना इसी श्रेणी में आता है.

क्या है बचाव- 

– यदि कोई बच्चा , युवा या व्यक्ति जो मजाक में भी कहता कि मर के दिखाऊंगा तो उसे गंभीरता से लें. गुमसुम है, अपने स्वभाव के विपरीत काम कर रहा है, उसे भी हल्के में न लें. 

– उसका अच्छा दोस्त बनकर कारणों का पता लगाएं न कि मजाक में लें. उसकी मदद करें.

– उसे काउंसलर से मिलवाएं, बात करें, समस्या समझें और समझाएं, कम्युनिकेशन गैप कतई न करें.

– परीक्षा, परीक्षाफल के वक्त बच्चों पर दबाव न बनाएं. परिणाम को स्वीकार करें. साथ ही उसे प्रोत्साहित करें.

– कुछ दिन उसकी समीक्षा करें. किसी भी बच्चे से उसकी तुलना न करें.

– ज्यादा डिप्रेशन होने पर डॉक्टर से अवश्य सलाह लें.