सामाजिक पंगुता के खतरे से बचने के लिए हमें पं दीनदयाल उपाध्याय के चिंतन को अपनाना होगा

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बलिया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के 101 वें जन्म दिन के अवसर पर समग्र विकास एवं शोध संस्थान, बलिया के श्रीराम विहार कालोनी स्थित कार्यालय पर पंडित दीन दयाल उपाध्याय एवं समग्र विकास नामक विषय पर एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसकी अध्यक्षता संस्थान के सचिव एवं अमर नाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा के प्राचार्य डा गणेश कुमार पाठक ने किया. 

गोष्ठी को संबोधित करते हुए  डा० संजीव चौबे ने कहा कि पंडित जी के विचार समग्र विकास के पोषक थे.  उनकी अवधारणा थी कि देश के समग्र विकास का आधार अपनी भारतीय संस्कृति होनी चाहिए. उनका मानना था कि लोकतंत्र भारत का जन्मसिद्ध अधिकार है. पंडित जी के कर्मचारी, मजदूर, सरकार एवं प्रशासन में समन्वय होना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करना प्रशासन का कर्तव्य होना चाहिए. उनका मत था कि लोकतंत्र को अपनी सीमाओं से अलग न होकर आमजन की राय, उनके विश्वास एवं धर्म के परिप्रेक्ष्य में सुनिश्चित करना चाहिए. मानव मात्र के लिए यदि किसी एक विचार दर्शन ने समग्रता में चिन्तन प्रस्तुत किया तो वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का एकात्म मानववाद का दर्शन है.

गोष्ठी को संबोधित करते हुए डा० संजीव चौबे ने कहा कि पंडित दीन दयाल जी समाजवाद एवं साम्यवाद को कागजी एवं व्यावहारिक सिद्धांत मानते थे. वे भारतीय परिप्रेक्ष्य में इसे भारतीयता  के न तो अनुरूप मानते थे न व्यवहारिक. उनका मत था कि भारत को चलाने के लिए भारतीय दर्शन ही कारगर उपाय हो सकता है. डा० कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि पंडित जी के अनुसार शासन को व्यापार नही करना चाहिए एवं व्यापारी के हाथ में शासन नहीं होना चाहिए. डा० सुनील कुमार ओझा ने कहा कि पंडित जी विकेन्द्रित व्यवस्था के पक्षधर थे. सामाजिक क्षेत्रों में वे राष्ट्रीय करण के विरोधी थे. डा० सुनील कुमार चतुर्वेदी ने कहा  कि पंडित जी के आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य मानव का सुख होना चाहिए. इस गोष्ठी में अभिनव पाठक , विवेक कुमार सिह , डा० सुनीता चौधरी आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए.