23 अगस्त सुखपुरा के लिये गौरव का दिन, यहाँ के क्रान्तिकारियों ने रचा इतिहास

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सुखपुरा (बलिया)। 23 अगस्त 1942 को बलिया पर पुनः अंग्रेजो का अधिपत्य कायम हो गया था. बंदूके छीने जाने व सिपाहियों की बेइज्जती से बौखलाई अंग्रेजी हुकूमत लाव लश्कर के साथ सुखपुरा में कहर बरपा रही थी. पूरा गांव खाली हो गया. कस्बे के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता चंडी प्रसाद को सुखपुरा चट्टी पर गोली मार दी गई. गौरीशंकर को उनके घर मे मौत की नींद सुला दिया गया. कुलदीप सिंह फरार हो गए, जो कभी लौटे ही नहीं. बताते हैं की फरारी के दौरान ही बिहार में कहीं उनकी मौत हो गई थी. 19 अगस्त को बलिया आजाद हुआ था. चित्तू पांडेय बलिया के कलेक्टर बनाए गए. 20 अगस्त को तुर्तीपार से घाघरा नदी पार कर पांच अंग्रेज सिपाही पैदल ही जिला मुख्यालय आ रहे थे. सुखपुरा के लड़ाकों को इसकी जानकारी दें भरखरा गांव के पास बंदूकें तो छीन ही ली गई वर्दी भी उतार लिया. सिपाहियों को धोती पहनने को मजबूर किया गया. यही नहीं सुखपुरा चट्टी पर पहुंचने पर सुखपुरा वासियों ने मनावता दिखाते हुए उन सिपाहियों को जलेबी पूरी खिलाकर बलिया के लिए रवाना किया. बन्दूक छिनने मे मुख्य रुप से नागेश्वर सिंह, रामकिशुन सिंह, मुसाफिर चौधरी, बैजनाथ पंडित ,राज नारायण सिंह आदि शामिल थे. घटना के बाद सभी भूमिगत हो गए. इसी बीच सुखपुरा के क्रांतिकारियों ने बलिया सिकंदरपुर मार्ग पर स्थित आवाला नाले पर बने पुल को तोड़ दिया. ताकि कोई प्रशासनिक अधिकारी लाव लश्कर के साथ ना आ सके. बन्दूक छीने जाने से बौखलाई अंग्रेजी हुकूमत ने सुखपुरा में कहर बरपाना शुरू किया. उस समय अमन शांति सेना के अध्यक्ष यदुनाथ गिरी थे. सरकार ने उन्हें आदेश दिया कि पांचों बदुकं तुरंत मिलनी चाहिए. महंथजी को 22 अगस्त तक का समय दिया गया. 23 अगस्त को अग्रेज अधिकारी पूरे लाव लश्कर के साथ सुखपुरा को घेर लिये. वह क्रोध में पागल थे, पहले गांव के मठिया पर गए वहां पर कुत्ते के प्रति प्रतिरोध करने पर कुत्ते को गोली मार दिये. उसके बाद महन्थ जी के हाथी को गोली मारे, तब तक महंत जी घर के पीछे से भाग निकले. अंग्रेज सिपाहियों ने मठिया में आग लगा दी. तब तक गौरी शंकर प्रसाद को जंगले के झरोखे से देख लिया और उन्हें भी गोली मार दिया. चंडी लाल घर से अपने खेत करमपुर जा रहे थे. उमर खान सिपाही ने बता दिया कि यह कांग्रेसी नेता है. तब क्या था उन्हें वहीं गोली से छलनी कर दिया गया. उन्हें खडसरा के अस्पताल पहुंचाया गया. बाद में बलिया ले जाते समय उन्होंने दम तोड़ दिया. कुलदीप सिंह पहले से ही फरार हो गए थे. उनका आज तक पता नहीं चला. तीनो रणबांकुरों की याद में सुखपुरावासी 23 अगस्त को शहीद दिवस के रुप में मनाते आ रहे हैं