1942 के आंदोलन के हीरक जयंती वर्ष में हुए रागिनी हत्याकांड पर कौन बोलेगा

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.

चैनल चंडीगढ़ की वर्णिका तो कैमरे में क़ैद करते है. मुंबई में वर्णिका जैसी स्टोरी तलाशते हैं, लेकिन बलिया रुख़ नहीं करते क्यों ?

विभूति नारायण चतुर्वेदी (वरिष्ठ पत्रकार)

एक थी ज्योति सिंह. दुनिया आज उसे निर्भया के नाम से याद करती है. बलिया की बेटी थी. दिल्ली में आतताइयों ने उसकी हत्या कर दी. उसकी मौत के बाद महिला सुरक्षा, बेटियों की रक्षा, सामाजिक दायित्व आदि की तमाम बातें हुईं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जघन्यता की थू-थू हुई. ये सब शायद इसलिए हो पाया क्योंकि वारदात दिल्ली में हुई.

मंगलवार को बलिया की एक और बेटी के साथ अमंगल हुआ. नाम था रागिनी. अभी ठीक से सुर बिखेर भी नहीं पाई थी. सिरफिरे ने सरेराह उसे चाक़ू से काट डाला. फिर उसके घर भी जा धमका. परिवार वालों को धमकाया. गाँव के प्रधानजी का बेटा जो ठहरा. बाप के चुनाव प्रचार में शायद इसकी ट्रेनिंग जो मिली होगी. लेकिन रागिनी की हत्या पर देश के राष्ट्रीय और राष्ट्रवादी चैनलों पर कोई अभियान नहीं चला. राष्ट्रीय अख़बारों में लीड स्टोरी भी अहमद भाई की जीत छपी.

रागिनी से संबंधित अन्य खबरों के लिए कृपया यहां क्लिक या टैप करें

चैनल चंडीगढ़ की वर्णिका तो कैमरे में क़ैद करते है. मुंबई में वर्णिका जैसी स्टोरी तलाशते हैं, लेकिन बलिया रुख़ नहीं करते क्यों ? उस बलिया को क्यों नहीं खंगालते जो 1942 में आज़ाद हो गया था. बाग़ी बलिया बन गया था. 1942 के आंदोलन के हीरक जयंती वर्ष में हुए बलिया कांड पर कौन बोलेगा? करेंगे, हम करके रहेंगे. बेटियों, माताओं और बहनों की सुरक्षा. (फेसबुक वाल से साभार)