कहीं फिर तबाही की वही दास्‍तां इस बार भी न लिख दे घाघरा

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.

घाघरा का पानी बढ़ते देख सभी को याद आ रहा तबाही का वह भयानक मंजर
जयप्रकाशनगर (बलिया) से लवकुश सिंह

बैरिया तहसील क्षेत्र में ही बिहार की सीमा से सटे यूपी का एक पंचायत है इब्राहिमाबाद नौबरार. इसे लोग अठगांवा के नाम से भी जानते हैं. घाघरा कटान से तबाही की एक भयानक दास्‍तां को समेटे इस गांव की आबादी घाघरा के उफान पर आते ही सहम जाती है. विभागीय लापरवाही के कारण ही इस गांव के किसान तो भूमिहीन हुए ही गए, गांव के लगभग 350 आलीशान मकानों सहित, गांव की लगभग अमिट निशानियां भी यादों में सिमट गई.

मुरलीछपरा विकासखंड के इस पंचायत की बची आबादी इस साल भी डरी हुई है कि कहीं वर्ष 2014 की ही तरह इस साल भी विभागीय उपेक्षा से घाघरा तबाही की वही दास्‍तां न लिख दे. वहीं बाढ़ खंड की ओर से इस बार यहां कुछ भी नहीं कराया गया. आज भी यहां लगभग 15 हजार की आबादी कटान के मुहाने पर है. वहीं बीएसटी बांध पर भी संकट के बादल दिख रहे हैं. यही विभागीय उपेक्षा यहां एक बार फिर आंदोलन की जमीन तैयार करने लगी है.

तब तबाही से बचने का नहीं बचा था कोई उपाय
यह बात वर्ष 2014 की ही है. इब्राहिमाबाद नौबरार पंचायत घाघरा कटान की भयंकर तबाही से जूझ रहा था. वर्ष 2014 में इस पंचायत की लगभग 18 हजार अबादी पूरी तरह बर्बाद हो चली थी. गांव से तीन किमी दूर बहने वाली घाघरा, 250 एकड़ उपजाऊ खेतों को निगलने के बाद गांव के आलीशान मकानों को तेज गति से अपने गर्भ से समाहित करते जा रही थी. तब मात्र 15 दिनों में लगभग 350 आलीशान मकान सभी के आंखों के सामने ही, घाघरा में समाहित हो गए. तब कुल नौ किमी का बीएसटी बांध शरणार्थियों से भर गया था. गांव के लोग सरकार और रहनुमाओं पर इस कदर खफा थे कि कोई भी प्रतिनिधि या अधिकारी इस गांव में जाने से भी कतराता था. इतनी तबाही के बाद भी इस गांव की बची आबादी को घाघरा कटान से बचाने के लिए कुछ भी हुआ.

क्‍या कहते हैं इब्राहिमाबाद नौबरार के वासी ?

बिना आंदोलन कभी नहीं हुआ कटानरोधी कार्य ः वर्ष 2014 की उस भयंकर तबाही के बाद वर्ष 2015 में गांव के लोगों का गुस्‍सा सातवें आसमान पर था. सभी गांव वालों ने एक बैठक कर कटानरोधी कार्य के लिए ही बेमियादी अनशन की तैयारी कर लिया. तब एक आंदोलनकारी के रूप में जब बैरिया विधायक सुरेंद्रनाथ सिंह पहुंचे तो यह बेमियादी अनशन एक बड़े रूप में तब्‍दील हो गया. पांचवे दिन यह अनशन एक बड़े आंदोलन के रूप में तब्‍दील हो गया. हजारों लोगों के सांथ सुरेंद्रनाथ सिंह ने चांददियर चौराहे पर पूरी तर‍ह चक्‍का जाम कर दिया. उसी दौरान बलिया से जिम्‍मेदार अधिकारी मौके पर पहुंचे और उसके पांच दिनों के बाद यहां कटानरोधी कार्य शुरू हुआ था. एक बार फिर सभी चुप हैं, तो इस गांव पर किसी का कोई ध्‍यान ही नहीं है – राकेश सिंह, आंदोलनकारी, अठगांवा

खर्च हो गए धन, नहीं बदले हालात ः उस आंदोलन के बाद गांव की बची आबादी को बचाने के लिए कटानरोधी कार्य जरूर हुआ, किंतु दुखद कि कार्य होने के बाद भी हालात जस के तस ही रह गए. तब यहां के लिए कुल 17 करोड़ एक लाख का एक प्रोजेक्‍ट पास हुआ था. उसी प्रोजेक्‍ट से 2015 में कार्य प्रारंभ हुआ. 2016 में भी गांव के लोगों के काफी हो-हल्‍ला करने पर उसी प्रोजेक्‍ट से कार्य हुआ, किंतु विभागीय लूट के चलते यह गांव उसी तबाही के मुकाम पर आज भी खड़ा है. वर्ष 2015-16 में घाघरा के तेवर यहां स्‍वत: ही शांत रहे, किंतु बाढ़ खंड इसे खुद के कार्यों की उपलब्धि बताते हुए अपनी पीठ खुद से थपथपाने लगा, जबकि सच्‍चाई से यहां की पूरी जनता बखूबी अवगत है – नंदजी सिंह, भाजपा मंडल अध्‍यक्ष, जयप्रकाशनगर

अब तो बीएसटी बांध पर है, भयंकर खतरा ः बाढ़ खंड की लापरवाही कहें या सरकारी उदासीनता, इस वर्ष इस गांव पर किसी का भी कोई खास ध्‍यान नहीं है. वहीं इस बात से कभी इनकार नहीं किया जा सकता कि यदि यहां घाघरा का तेवर थोड़ा भी तल्‍ख होता है तो यहां बीएसटी बांध पर भी भयंकर खतरा है. इस बांध पर खतरे का मतलब है कि यहां दो लाख की अबादी खतरे में पड़ जाएगी – रामनरेश चौधरी, बसपा

कभी भी समय से नहीं होते सचेत ः इस गांव की इतनी बड़ी तबाही के बावजूद संबंधित विभाग के लोग कभी भी समय से सचेत नहीं होते. उनका बचाव कार्य तभी शुरू होता है, जब यहां अफरा-तफरी मच जाती है. इस वर्ष तो इस गांव के निवासियों को और मरने के लिए छोड़ दिया गया है. घाघरा अभी से ही तबाही की ओर इशारा करने लगी है, किंतु सभी चुप्पी साधे बैठे हैं  – सदन पंडित, अठगांवा