अब कब चेतेंगे! खूब मिटाया हमने-तुमने, पानी यूं नादानी में, नहीं बचा धरती पर पानी, बहा व्यर्थ बेईमानी में

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सिकंदरपुर (बलिया) से संतोष शर्मा

जल और जीवन का चोली दामन का साथ है. हमें जीवित रहने के लिए जल तो चाहिए ही प्रकृति प्रदत्त इस जल को संचित करने की व्यवस्था भी हमें ही करनी पड़ेगी. इससे सभी अवगत हैं बावजूद इसके जल को संरक्षित करने के प्रति हम न केवल बेपरवाह है, बल्कि प्रकृति और पूर्वजों द्वारा प्रथम जल संचय के पुराने संसाधनों को नष्ट कर अपने पैरों पर स्वयं कुल्हाड़ी चला रहे हैं. बढ़ती आबादी के बीच अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पुराने तालाब, गड़ही, कुओं आदि तो अस्तित्वहीन हो ही रहे हैं, जबकि इस प्रकार के नए संसाधनों के सृजन के प्रति उदासीन बने हुए हैं.

इसका कुफल बढ़ते जल संकट के रुप में हमारे सामने आ रहा है. मवेशियों के नहाने की किल्लत बढ़ती जा रही है. यदि हमने अभी नहीं चेता तो पानी को लेकर भविष्य में हमें भयावह स्थिति का सामना करना पड़ेगा. हमें बूंद बूंद पानी के लिए तरसना पड़ेगा. यह तथ्य है कि बारिश के अभाव में आज भी इलाके के अधिकांश निजी व ग्रामीण अंचलों के पोखरों से धूल उड़ रहा है, जबकि क्षेत्र के सिवानकला गांव का एक ऐसा पोखरा है, जो आज भी पानी से लबालब भर जल संरक्षण का नजीर बना हुआ है.

पूर्व मंत्री मोहम्मद जियाउद्दीन रिजवी के पूर्वजों द्वारा करीब 3 बीघा क्षेत्रफल जमीन में गांव के पश्चिम तरफ निर्जन स्थानों में इस पोखरा को सात दशक पूर्व खुदवाया गया था. उद्देश्य था जनसेवा का खुदाई के बाद से ही उसका पानी गांव के लोगों के नहाने व मवेशियों के पीने का काम आता है. कुछ दशक बाद मिट्टी भर जाने से पोखरा छिछला और गहराई कम हो गई थी. एक दशक पूर्व पोखरा की पुनः खुदाई करके उसकी गहराई बढ़ा दी गई. फलतः  तब से आज तक पूरे वर्ष भर पानी से लबालब भरा रहता है. इस पोखरा का पानी आज भी इतना स्वच्छ है कि पूरे दिन उसमें नहाने वालों की भीड़ लगी रहती है. मवेशियां भी उन में पानी से अपनी प्यास बुझा संतुष्टि पाते हैं.

गांव में जल संरक्षण के पुराने संसाधनों पर बढ़ता कब्जा गंभीर रूप धारण करता जा रहा है. वही  पोखरों में मिट्टी व कूड़ा डालकर लोग इसे धीरे-धीरे कब्जा करते जा रहे हैं. यह सोचे बिना कि इन संसाधन का जीवित रहना ना केवल समुचित समाज बल्कि उनके स्वयं के हित के लिए भी जरूरी है. यही स्थिति शासन की उदासीनता और अतिक्रमण के खिलाफ कठोर करवाई के अभाव में पैदा हुई है – रजनीश कुमार राय
शासन द्वारा दशक पूर्व से जल के संरक्षण हेतु अभियान चलाया जा रहा है. इसके लिए तरह-तरह के आयोजनों के साथ ही काफी धन भी खर्च किया जा रहा है, जबकि अभियान को गति प्रदान करने में हमारी सहभागिता नहीं के बराबर है. फलतः पुराने संसाधन बर्बाद होते जा रहे हैं और नए का सृजन नहीं के बराबर हैं, जिसका कुफल पानी की कमी के रुप में हमारे सामने आ रहा है – गुड्डू सिंह
वर्तमान के साथ ही भावी पीढ़ी को भी जल संकट से बचाने हेतु जल का संरक्षण आवश्यक है, अन्यथा आगे चलकर भयावह स्थिति पैदा हो सकती है जल संरक्षण का अभियान तभी सफल होगा, जब सभी लोग अपनी जिम्मेदारी समझने में भागीदार बनेंगे. इसलिए हमें अपनी उदासीनता छोड़कर पुराने संसाधनों पर अतिक्रमण के खिलाफ एकजुट हो आवाज बुलंद करनी होगी – उदयबहादुर सिंह
जल संकट के मद्देनजर उसके संरक्षण हेतु सरकार तो सचेत है. सरकार द्वारा इसके लिए भी तरह तरह के उपाय किए जा रहे हैं, जबकि हम उसके संचय के संसाधनों का अस्तित्व ही समाप्त करते जा रहे हैं. यह प्रवृति उचित नहीं है – नियाज अहमद