द्वाबा में हरे पेड़ों की कटान धड़ल्ले से

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​वन व पुलिस विभाग के मिलीभगत से वृक्ष विहीन हो रहा क्षेत्र

बैरिया (बलिया)। केंद्र तथा राज्य सरकार पर्यावरण को दूषित होने से बचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर पौधे लगाने व पेड़ों को बचाने का प्रयास कर रही है, लेकिन वन विभाग व पुलिस की मिलीभगत  से पेड़ों की कटाई  धडल्ले से जारी है. हल्दी थानान्तर्गत परसिया, नंदपुर, भरसौत, हल्दी आदि गांवों में आधा दर्जन से अधिक हरे पेड़ो की कटाई हो रही है. प्रदेश सरकार के सख्त निर्देशों के बावजूद हल्दी, रेवती, दोकटी व बैरिया थाना क्षेत्रों में भी जारी है. 

अलबत्ता वन विभाग व पेड़ कटाई के धन्धे में लिप्त लोगों की मदद से कटाई का तरीका बदल गया है. कटाई जारी है. बानगी के तौर पर हल्दी थाना क्षेत्र के कठही व बबुआपुर के सरकारी ट्यूबवेल के पास  तथा  बगीेचे में आम के पेड़ की कटाई को देखा जा सकता है. रविवार की शाम से शुरू कर रात तक की गई. सुबह होते ही ट्रैक्टर पर लाद कर ले जाने का प्रयास किया गया, लेकिन जब इसकी जानकारी किसी ने मोबाइल से डीएफओ को दे दी हुई तो तत्काल कार्रवाई का निर्देश अधीनस्थों को दिए. जिसकी जानकारी विभागीय लोगों द्वारा ठेकेदार को मिल गई.  

नतीजा रहा कि ठेकेदार ट्रैक्टर को खाली करा कर हटवा दिया. धंधे से जुड़े मजदूर बताते हैं कि पेड़ों की कटाई इस कदर की जाती है कि  स्थान पर कोई निशानी न मिले. पेड़ों को जड़ से काट कर उस पर मिट्टी फेक देते हैं. ताकि पुष्टि न हो सके. वही पुलिस व वनविभाग के कर्मचारी पैसा लेकर अपनी आँख बंद कर लेते है.  ग्रामीणों का कहना है कि इस तरह के चल रहे पेड़ कटाई के धंधे मे अगर कहीं से कोई आपत्ति नहीं हुई तो मामला रफा दफा. अन्यथा उच्चाधिकारियों तक सूचना पहुंच गयी, जांच हो गया तो वन विभाग के कर्मचारी अपनी साख बचने के लिए मामूली जुर्माना  लगा कर छोड़ छोड देते हैं.

कहने को तो इलाके मे चलने वाली अवैध आरा मशीनें सरकारी आदेश के बाद प्रत्यक्ष में  बन्द करा दी गयी हैं. लेकिन वन विभाग की मिलीभगत से कुछ आरा मशीनें चल रही है. जिस बात को लेकर आरा मशीन संचालकों व बैरिया वन क्षेत्राधिकारी व कर्मचारियों के बीच इन दिनो शीत युद्ध सा चल रहा है. पुलिस विभाग की मिलीभगत से ट्रांसपोर्टेशन हो जाता है. वन विभाग के मिलीभगत से पेड़ कट जा रहे हैं, आरा मशीनें चल जा रही है. पूरी तरह से वनाच्छादित द्वाबा क्षेत्र दो-ढाई दशक में वनहीन हो गया है. विडम्बना यह है कि इसके संवर्धन और सुरक्षा की जिम्मेदारी जिन कन्धों पर सौपी गयी. वही इसे उजाड़ने के जुगत बता देते हैं. सरकारें हर साल वन लगाने पर अकूत धन खर्च करती है. लेकिन उसका रिजल्ट क्या सामने आया यह कभी जांच नही किया जाता.