हवा शांत, बिजली नदारद, मानसून भकुआया, लोग बिलबिलाए

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सिकंदरपुर/बैरिया (बलिया)। बुधवार को दोपहर में हुई अचानक हल्की बारिश से उमस भरी भीषण गर्मी से लोगों को थोड़ी राहत मिली है. वहीं किसानों के चेहरे खिल गए हैं.

सिकंदरपुर प्रतिनिधि के मुताबिक बुधवार को सुबह से ही हवा शांत और बिजली नदारद थी. जिससे पड़ रही उमस भरी भीषण गर्मी से लोग बिलबिला रहे थे. उसी दौरान दोपहर में अचानक बदली छाने के कुछ देर बाद बूंदा बांदी होने लगी, जो क्रमशः तेज हो गई. करीब 20 मिनट तक हुई हल्की बारिश ने लोगों को काफी राहत पहुंचाया. सर्वाधिक राहत रोजेदारों की हुई जो सुबह से ही भीषण गर्मी के चलते कठिनाई का अनुभव कर रहे थे.

ग्लोबल वार्मिंग की देन है मौसम में अचानक बदलाव-डा. गणेश पाठक

बैरिया प्रतिनिधि के मुताबिक अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा , बलिया के प्राचार्य एवं पर्यावरणविद् डा. गणेश कुमार पाठक ने बताया कि अब मौसम के मिजाज में अचानक यों ही परिवर्तन होता रहेगा. मौसम में अचानक परिवर्तन होते रहने का मुख्य कारण ” ग्लोबल वार्मिंग” है, जिससे पृथ्वी के तापमान में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है , जिसका मुख्य कारण ग्रीन हाउस प्रभाव, ओजोन परत में छिद्र होना, वनों का विनाश होना, उद्योगों से निकली विषैली गैसें, मोटर वाहनों से निकला कार्बन- डाई- आॅक्साइड गैस एवं आधुनिक कृषि पद्धति है. इन सबके प्रभाव से पृथ्वी के तापमान में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है.
डाॅ. पाठक ने बताया कि ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव न केवल मानव शरीर पर, बल्कि कृषि उत्पादन में कमी, जीव जन्तुओं का नष्ट होना, वनस्पतियों का नष्ट होना एवं मौसम की अनिश्चितता तथा मानसून की सक्रियता पर भी पड़ता है.
डाॅ पाठक ने बताया कि यदि इस वर्ष के ही मानसून की सक्रियता को देखा जाय तो पहले मौसम वैज्ञानिकों ने यह भविष्यवाणी किया कि इस वर्ष मानसून पाॅच दिन पहले ही आ जायेगा. किन्तु पुनः भविष्यवाणी की गयी कि अब मानसून पाॅच दिन विलम्ब से आयेगा. वास्तविकता तो यही है कि मानसून की उत्पत्ति तो समय से हो गयी थी, किन्तु जैसे जैसे मानसून आगे बढ़ता गया, इसकी गति धीमी पड़ने लगी, मेरी समझ से इसका मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव है. स्थानीय स्तर पर जगह जगह तापमान में अतिशय वृध्दि के कारण चक्रवातिय हवाएं उत्पन्न हुईं , आॅधी एवं वर्षा आई जिससे मानसून की गति धीमी पड़ गयी. यह चक्रवातिय प्रभाव मध्य भारत में अधिक रहा, इसलिए इस क्षेत्र में मानसून आने में देरी हो रही है.
जहा तक बलिया सहित पूर्वांचल के जिलों के मौसम की बात है, तो इस क्षेत्र में भी मानसून आने में चार – पाॅच दिनों की देरी है, वैसे बलिया सहित पूर्वांचल के अधिकांश जिलों में प्राकृतिक वनस्पतियों का अभाव है. बलिया तो प्राकृतिक वनस्पति की दृष्टि से वनशून्य क्षेत्र है और मानव द्वारा रोपित वनावरण भी दो प्रतिशत से भी कम है. इसका सीधा प्रभाव इस क्षेत्र के मौसम पर पड़ता है. यही कारण है कि इस क्षेत्र की वर्षा भी अनियमित होती है. इस वर्ष इस क्षेत्र के तापमान में भी अतिशय वृद्धि हुई है और तामान 46 अंश सेण्टीेग्रेड तक पहुॅच गया था. निश्चित ही तापमान के इस उतार- चढ़ाव का असर इस क्षेत्र के मौसम पर भी देखने को मिले. यदि हमें बलिया सहित पूर्वांचल के मौसम को सुव्यवस्थित रखना है तो इस क्षेत्र की धरा को हरा भरा बनाना होगा. क्यों कि 33प्रतिशत भूमि पर वन आवरण का होना आवश्यक है. तभी पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखते हुए मौसम के मिजाज को भी सुव्यवस्थित रखा जा सकता है.