शादी-विवाह में अब कहां मिल पाता तब जैसा सेवा-सत्‍कार 

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.

तब और अब के बाराती माहौल पर एक सामाजिक आकलन 
 लवकुश सिंह
अन्‍य समाजिक बदलाव के सांथ-सांथ शादी-विवाह में भी अब सत्‍कार के तौर-तरीकों में काफी हद तक बदलाव आ चुका है. भागम-भाग के इस दौर में रूप-स्‍वरूप, संस्‍कार, सबकुछ बदल गया है. गांव की जमीं पर आज भी पूराने लोग मिल जाते हैं, जो तब की चर्चा, बारात की सेवा-सत्‍कार, व यादें जब युवाओं से साझ़ा करते हैं तो सभी का मन रोमांचित हो उठता है.
साधन का था अभाव, तब भी थी उत्‍साह
तब के माहौल को बयां करते हुए जयप्रकाशनगर क्षेत्र के बुर्जुग दरोगा सिंह बताते हैं कि गर्मी का वह महीना,  भरी दोपहरी, कड़क धूप में जब हम किसी बारात के लिए निकलते थे. पैदल लगभग पांच से सात किमी चलकर कर हम नदी घाट सिन्‍हा, महुली, मांझी या रिविलगंज पहुंचते थे. यहां से नाव से पार कर वहां से बस या फिर ट्रक पर सवार होकर निर्धारित स्‍थान तक जाते थे. उस दरम्‍यान जो अतिथि सेवा-सत्‍कार का रूप-स्‍वरूप था, वह अब हर जगह पूरी तरह गायब है. तब साधन का अभाव था, फिर भी बारात जाने के लिए मन उत्‍साहित रहता था, आज पर्याप्त साधन हैं, फिर भी बारात जाने के नाम पर उबन सी होने लगती है. अब सिर्फ संबंधों के निर्वाह के नाते बारात जाने की सबकी विवशता है.
तब पूरी बारात लेती थी सतू-लकठो और मूढ़ी का आनंद
तब की एक-एक बात को साझा करते हुए दलजीत टोला निवासी बच्‍चालाल सिंह कहते हैं कि तब गांव-देहात से जब बारात नदी घाट पार कर जाती थी, तब बेटे पक्ष के लोग सतू की बोरी खोलते और फिर शुरू हो जाता सतू, प्‍याज, आचार, हरा मिर्च के सांथ सतू खाने का दौर. नदी घाट पर किसी बगीचे की छाया में पूरी बारात आराम करती और सतू का आनंद लेती. उधर से वापसी में भी बारात मालिक की ओर से कुछ अलग इंतजाम होता था-वह था लकठो और मूढ़ी. वापसी के समय में भी नदी घाट पर पूरी बारात को यह वितरित किया जाता था और लोग घाट पार कर वही लकठो और मुढ़ी खाते हुए घर पहुंच जाते थे. अब साधन होने के बाद लोग जल्‍दी गंतव्य तक जरूर पहुंच जाते हैं, किंतु वह आनंद अब नहीं मिल पाता, जो कम संसाधनों के समय था.
शमियाने में होता था आराम का देशी इंतजाम
इसी क्षेत्र के संजय साह कहते हैं कि अब के समय में शमियाने या किसी स्‍कूल के हाल में बारात की व्‍यवस्‍था की जा रही है, जहां आराम के लिए चारपाई और कुर्सी जरूर होती हैं, किंतु तब के समय में ठेठ देशी इंतजाम में ही मन संतुष्‍ट था. शमियाने के बाहर गांव की देशी चारपाई, बिछावन, तकिया आदि का इंतजाम होता था. उसी पर गांव के बुर्जुग ठाट से सोते थे, और बेटे वाले की तरह फरमान जारी करते थे. लड़की वाले के पक्ष के दर्जनों लोग भी सेवा-सत्‍कार के लिए सदैव मौजूद रहते थे, अब बहुत कुछ खुद से ही करना होता है. यहां तक कि खाने-पीने के मामले में भी.
तब मंडप में होता था, शैक्षिक तर्क
टोला रिसालराय निवासी अवकाश प्राप्‍त शिक्षक रामकुमार सिंह कहते हैं कि तब की स्थिति में जब वर पक्ष के लोग गुरहथ्‍थी में कन्‍या पूजन के लिए जाते थे, तब का माहौल किसी शास्‍त्रार्थ से कम नहीं होता था. वधू पक्ष के जानकार मंडप में वर पक्ष के लोगों से विद्वता के आकलन के उद्देश्‍य से सवाल खुले रूप से करते थे, जिसका जबाब वर पक्ष के लोगों को देना होता था, यदि वर पक्ष जवाब नहीं दे पाता, तो वधू पक्ष के लोग खुले रूप से वर पक्ष के लोगों की खिल्‍ली उड़ाते. इसलिए तब गुरहथ्‍थी में वर पक्ष से अधिकांश गांव के पढ़े-लिखे लोग ही मंडप में जाते थे, ताकि वर पक्ष की प्रतिष्‍ठा बरकार रहे.
बदले माहौल में अब है पग-पग पर खतरा 
बदले माहौल में अब तो पग-पग पर खतरा ही खतरा है, तब बारात के मनोरंजन के लिए गोड़ऊ नाच से लेकर, लौंडा के नाच पर ही लोग फिदा थे, अब लौंडा के नाच की कोई खास पूछ नहीं रही. अब आरकेस्ट्रा में नृत्‍यांगनाओं के अश्‍लील डांस पर हर जगह बवाल है. शराब की मस्‍ती के बीच मनोरंजन के इस खेल में हत्‍याएं तक हो जा रही है. कुल मिलाकर तब और अब में अंतर यह कि तब शादी का मतलब ही कुछ और था, अब के समय में शादी का मतलब कुछ और ही हो चला है.