हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा-सरयू तड़पती हैं

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सिताबदियारा में भी सिमटता जा रहा गंगा और घाघरा का स्‍वरूप
लवकुश सिंह

हमारे जीवन में मां की अहमियत ही कुछ और है. हम चाहे कितने भी कठोर हो जाएं, किंतु मां कठोर नहीं होती, किंतु हम बार-बार वही गलती करे तो फिर मां के दिल पर क्‍या गुजरती है, इसका सहज अनुभव किया जा सकता है. ठीक वही स्थिति हमारी मां गंगा या फिर घाघरा की भी है. एक तरफ हम बड़े ही गर्व से यह कहते हैं कि हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है. गंगा के प्रति हम श्रद्धावान भी कम नहीं हैं. हम इसे अपनी मां की संज्ञा से विभूषित करते हैं, फिर हम उस वक्‍त क्‍यों कठपुतली बन जाते हैं, जब हमारी आंखों के सामने ही इस नदी में कचरा फेंका जाता हैं.

जाहिर सी बात है हमारी अपनी मां को यदि कोई कुछ कह दे या उस पर कचरा फेंक दे, तो हम उसे कठिन से कठिन रूप से दंडित करते हैं, फिर गंगा भी तो हमारी मां है, हम इनकी बहती अविरल धारा में कचरा फेंकते कैसे देख पाते हैं. यह तर्क जेपी के गांव के निवासियों का है. जेपी के गांव सिताबदियारा में बहती गंगा और घाघरा के सिमटते रूप और प्रदूषण से चिंतित यहां के निवासी भी कम अनुभव नहीं रखते. गंगा तट पर निवास करने वाले ऐसे दर्जनों लोग हैं, जो बताते हैं कि आज से 15-20 वर्ष पहले इसी गंगा और घाघरा में जितनी मछलियां मिलती थीं, आज वह घटकर 10-20 प्रतिशत ही रह गई हैं.

इसके अलावा नदी में अनायास ही दिख जाने वाले सोंस, कछुए, अब कभी भी दिखाई नहीं देते. गंगा और घाघरा की स्‍वच्‍छता के संबंध में इस क्षेत्र के निवासी शिक्षक योगेंद्र सिंह, शिक्षक हरेंद्र सिंह, बसंत सिंह, टुनटुन सिंह, हरेकृष्‍णा सिंह, रामाकांत यादव, जनार्दन यादव सहित दर्जनों लोगों ने यह माना कि गंगा और घाघरा को दूषित करने के पीछे ज्‍यादा जिम्‍मेदार हम खुद ही हैं. कहा कि मूर्ति विसर्जन हो या फिर पूजा-पाठ के बाद हवन आदि का कचरा, हम बिना सोचे विचारे गंगा में प्रवाहित कर देते हैं. हमें इस बात की कोई फिकर नहीं होती कि इस कचरे को फेंके जाने के बाद नदी में कितने जीवों की जान चलीं जाती हैं.

20 वर्ष पहले नहीं था ऐसा स्‍वरूप – स्‍थानीय क्षेत्र में इसी गंगा और घाघरा का रूप 20 वर्ष पहले काफी सुंदर था. नदी घाट हो या नदी का पानी, सब देखते ही हर किसी का मन खुश हा जाता था. टीपूरी घाट से सिनहा या महुली घाट सभी स्‍थानों पर किसी भी मौसम में लोग सीधे नाव से घाट पार हो जाते थे. स्‍नान के लिए भी अच्‍छी जगहें थीं. अब उसका रूप इतना बदल गया है कि इसके कई पार्ट नजर आते हैं. स्‍नान के लिए तो अब हर घाट पर खतरा है. –अशोक कुमार सिंह, व्‍यवस्‍थापक, जेपी ट्रस्‍ट, जयप्रकाशनगर

सिताबदियारा में ही है अविरल गंगा-सरयू का संगम – सिताबदियारा में ही अविरल गंगा और घाघरा का का संगम भी हुआ है. गंगा और घाघरा यह संगम पहले बड़का बैजू टोला के सीध में ही था अब उक्‍त दानों नदियों का मिलन डउल के सीध में है. इस स्‍थान का दृश्‍य किसी नाव पर सवार होकर नदी में यात्रा करते हुए ही देखा जा सकता है. कभी इस स्‍थान पर भी स्‍नान को भारी भीड़ जमा होती थी, अब यहां भी स्‍नान मुनासिब नहीं है – महंथ यादव, यूवा किसान, बाबू के डेरा, जयप्रकाशनगर

हम सबका हो यही संकल्‍प
मूर्ति विसर्जन नदी मे न करें. नदी में मिट्टी का खनन न करें. नदी तट पर डिटर्जेंट से कपड़ा न धोएं. नदी की धारा पर बांध न बनाएं. नदी में पाए जाने वाले कछुओं का शिकार न करें. पूजा-पाठ या अन्‍य प्रकार का कचरा नदी में न फेकें. मछली पकड़ने के लिए प्राकृतिक जाल का प्रयोग करें. गंगा जल के लिए बहते पानी वाले स्‍थान से जल लें. नदी तट यदि गंदा हो तो समूह बनाकर सफाई करें.