यूपी ही नहीं, बिहार में भी योगी समर्थकों ने की जमकर आतिशबाजी

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सीएम के रेस में कैसे सबसे आगे निगल गए योगी

चहुओर खुशी-देश को मिले मोदी, प्रदेश को मिल गए योगी

लवकुश सिंह

मुख्यमंत्री की रेस में जितने भी नाम थे, उनको पीछे छोड़कर जब योगी आदित्यनाथ के नाम पर मुहर लगी तभी से हर कोई वजहें तलाशने लगा है.  दिल्ली में मोदी तो लखनऊ में योगी का फॉर्मूला कैसे निकला ? कहा जा रहा है कि 2017 में योगी को यूपी को गद्दी देने के पीछे असली वजह 2019 है. यूपी में 14 साल के वनवास के बाद जब दोबारा बीजेपी उत्तर प्रदेश की सत्ता में ऐतिहासिक बहुमत के साथ लौटी तो नरेंद्र मोदी ने योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाकर वह दांव चला है, जिसकी धमक 2019 के लोकसभा चुनाव में भी गूंजनी तय है. योगी आदित्यनाथ जिनकी हिंदुत्ववादी छवि ही अब तक रोड़ा बनती रही थी, उसी योगी को सीएम पद की कुर्सी मिली, तो इसकी बड़ी वजह योगी की कट्टर हिंदुत्ववादी छवि ही मानी जा रही है.

योगी के नाम पर यह है भाजपा का सियासी दाव

मात्र 26 साल में सांसद बनने वाले योगी आदित्यनाथ पांच बार से लोकसभा चुनाव जीत रहे हैं.  लंबा राजनीतिक अनुभव रखने वाले योगी आदित्यनाथ सीएम पद की रेस में दूसरों से आगे निकले तो इसकी वजह भी बड़ी है. उत्तर प्रदेश के चुनाव में इस बार जातिगत समीकरणों के मिथक पूरी तरह टूट गए, तभी जाकर प्रचंड बहुमत मिला. भाजपा का शीर्ष नेतृत्‍व जाति की राजनीति का जाल तोड़कर उसे हिंदू राजनीति के नाम पर तब्‍दील करने के लिए योगी आदित्यनाथ को यूपी सीएम का ताज दिया है. योगी जिस गोरक्षापीठ से जुड़े हुए हैं, उसका मंत्र ही है जाति-पाति पूछे नहिं कोई-हरि को भजै सो हरि का होई.

माना जा रहा है कि योगी को सीएम बनाने का सीधा संदेश यह है कि उत्तर प्रदेश में दलित और यादव वोट बैंक पर आधारित राजनीति को हिंदू वोटबैंक के नाम पर तोड़ा जाए और इसी आधार पर 2019 का चुनाव जीत लिया जाए. इस बात की पुष्टि विरोधियों के बयान से ही हो जाती है. याद करिए उत्तर प्रदेश के चुनाव में जब बिजली, श्मशान, कब्रिस्तान, एंटी रोमियो स्क्व़ॉयड जैसे बयान देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह वोट मांग रहे थे, तब योगी आदित्यनाथ ही इनके बाद इकलौते नेता थे, जो हर सभा में अखिलेश यादव के विकास कार्यों को हिंदू-मुस्लिम के बीच में बंटा हुआ दिखाकर राजनीति कर रहे थे.

तब भी कट्टर, अब भी कट्टर

90 के दशक में बीजेपी को जब स्पष्ट बहुमत मिला था, तब कल्याण सिंह जैसे कट्टर हिंदुत्ववादी नेता को मुख्यमंत्री बनाया गया था. अब 2017 में एक बार फिर से बीजेपी 325 सीटें लेकर सरकार बनाने निकलीं तो मोदी-अमित शाह ने हिंदुत्वादी राजनीति के पुरोधा योगी आदित्यनाथ पर भरोसा किया है. माना जा रहा है कि 2017 में योगी आदित्यनाथ को सीएम बनाने के पीछे सोच हिंदुत्व की चाल और विकास के चेहरे को आगे करने की है.

योगी सीएम, मौर्य-शर्मा डिप्‍टी सीएम, फिट हुआ जातीय बैलेंस

बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को आगे करके जहां हिंदुत्व का संदेश और विकास का रास्ता अपनाया है. वहीं दो डिप्टी सीएम चुनते हुए, जातियों की राजनीति बैलेंस भी संतुलित कर दिया है. कुल मिलाकर अब उत्तर प्रदेश से दिल्ली की राजनीति कुछ ऐसे साधी जाएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विकास का चेहरा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, हिंदुत्व का चेहरा, उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, पिछड़े वर्ग का चेहरा, उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, ब्राह्मण चेहरा, इसके अलावा बीजेपी ने मंत्रियों के पदों को लेकर जो जातीय समीकरण बिछाए हैं, माना जा रहा है कि 2017 का यही फॉर्मूला 2019 में लोकसभा चुनावों में बीजेपी की जीत का रास्ता खोल सकता है.

यूपी ही नहीं, बिहार में भी हुई आतिशबाजी

यूपी में गोरक्षपीठाधीश्वर सांसद योगी आदित्यनाथ के मुख्‍यमंत्री बनने के बाद लखनऊ में विधायक दल की बैठक में नेता चुने जाने के बाद, सिर्फ यूपी में ही नहीं, बिहार में भी हिंदू संगठनों व भाजपा समर्थकों ने जमकर आतिशबाजी की. छपरा के नगरपालिका चौक घंटों पटाखों की आवाज से गूंजता रहा. इसके अलावा पूर्वांचल के सभी जनपदों में गांव से लेकर शहर तक सोशल साइटों पर लोग अपनी-अपनी भावनाओं को लेकर मौजूद हैं.

उत्तर प्रदेश के 32वें मुख्‍यमंत्री हैं योगी

यूपी के 32 वें मुख्‍यमंत्री हुए योगी. योगी की असल पहचान गोरखनाथ मंदिर ही है, जिसमें हमेशा असंख्‍य लोगों की आस्था रहती है. वहां मकर संक्राति पर हर धर्म और वर्ग के लोग बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाने जरूर जाते हैं. इस मंदिर 52 एकड़ में फैला है. गोरखनाथ मंदिर हिंदू राजनीति के महत्वपूर्ण केंद्र भी है. महंत अवैद्यनाथ ने इसे और आगे बढ़ाया और उनके निधन के बाद महंत योगी आदित्यनाथ इस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.

तभी से खास चर्चा में आए योगी

साल 2002 में कुशीनगर ज़िले में एक कांड हुआ था. मोहन मुंडेरा कांड. उसी के बाद योगी के नेतृत्व में दोषियों पर कार्रवाई के लिए बड़ा आंदोलन शुरू हुआ था. इसके अलावा जनवरी 2007 में एक युवक की हत्या के बाद योगी आदित्यानाथ की हिन्दू युवा वाहिनी कार्यकर्ताओं का गोरखपुर में एक खास वर्ग से झगड़ा भी हुआ था. तब हालात इतने बिगड़ गए थे कि प्रशासन को कर्फ़्यू तक लगाना पड़ा. उस परिवेश में भी योगी नहीं रूके. सर्वत्र रोक के बावजूद भी योगी आदित्यनाथ ने सभा की. उत्तेजक भाषण भी दिया. उन्‍हें 28 जनवरी 2007 को गिरफतार भी किया गया, हलांकि योगी को गिरफतार करने वाले डीएम और एसपी को दो दिन बाद ही मुलायम सिंह यादव की सरकार ने सस्पेंड कर दिया था.