पनिया के जहाज से पलटनिया बनके जइहऽ…. हमके ले के अइहऽ हो…..पिया सेनूरा बंगाल के

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.

छपरा के जलालपुर मिश्रवलिया के महेंद्र मिश्र की जयंती पर विशेष

लवकुश सिंह

अंगुलि में डसले बिया नागिनिया रे, ननदी सैंया के जागा द. सासु मोरा मारे रामा, बास के छेवकिया, कि ननदिया मोरा रे सुसुकत, पनिया के जाए, जैसे कई लोक प्रिय धुन जब सुनाई पड़ती हैं तो बरबस ही इन गीतों के रचियता पंडित महेंद्र मिश्र (महेंदर मिसिर) की याद हर भोजपुरी भाषा-भाषी के लोगों को आ ही जाती है. यूपी-बिहार ही नहीं, देश के लगभग भोजपूरी क्षेत्रों में जितने भी भोजपुरी गायक या गायिका हैं, आज भी उनकी गोतों को जरूर स्‍वर देते हैं. यह बहुत कम लोगों को पता है कि पूरबी धुनों के जनक पंडित महेंद्र मिश्र का जन्म बिहार के छपरा जिले के जलालपुर प्रखण्ड के मिश्रवलिया गाव में 16 मार्च 1886 को हुआ था. आज उनकी 130 वीं जयंती है और हम भी आज पढ़ लें उनके जीवन का संक्षिप्‍त दांस्‍तां-

 

जाली नोटों से डांवाडोल कर दिया था अंग्रेजी हुकूमत

पूरबी धुन के रचयिता महान स्वतन्त्रता सेनानी पंडित महेंद्र मिश्र वह नाम है, जिन्‍होंने जाली नोट छाप कर आजादी की जंग के समय स्वतन्त्रता संग्राम में जुड़े लोगों की आर्थिक मदद कर अपनी एक अलग ही पहचान बनाई थी. तब हुआ यह था की जब रात में सब लोग सो जाते थे, तो आंगन के शिव मंदिर में पूजा के बहाने जाकर पंडित जी सारी रात नोट छापते और सुबह यही नोट भिखारियों को दे देते थे. दरअसल यह भिखारी लोग स्वतन्त्रता सेनानी होते थे. तब उनके जाली नोटों के बदौलत ही अंग्रेजी हुकूमत डांवाडोल हो गयी थी. बताते हैं कि महेंद्र मिश्र द्धारा नोट छापने की जानकारी जब अंग्रेजी हुकूमत को हुई, तब इस स्थिति से घबरा कर अंग्रेजी हुकूमत ने पंडित महेंद्र मिश्र के यहां गोपीचन्द्र नाम के गुप्तचर अधिकारी को लगा दिया. जो पंडित महेंद्र के यहां काम काज देखता था, किंतु यह काम इतने गुपचुप तरीके से होता था कि उक्त अधिकारी को भी तीन साल यह पता लगाने में लग गया कि पंडित जी नोट छापते कब हैं ? 1924 में गोपीचन्द्र की निशानदेही पर पंडित जी को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके साथ उनका छापाखाना भी बरामद कर लिया गया, जो आज भी सीआइडी के दफ्तर में सजा कर रखा गया है. इसी गिरफ्तारी के वक्त पंडित जी ने एक गाना गया था जो आज भी लोगो के जुबान पर है-‘’हंसी हंसी पनवा खियाइले रे गोपिचन्दवा पिरितिया लगा के भेजवले जेहल खनवां.’’

खुद के घर में गुमनाम हैं पंडित जी

भोजपुरी से जुड़े लोग या बिहार सरकार उनकी जयंती पर सरकारी कार्यक्रम तो आयोजित करती है, पर पंडित जी अपने घर में ही गुमनाम हो चलें हैं. खास यह भी कि अब तक ना इन्हें स्वतन्त्रता सेनानी का दर्जा मिला है और ना उनके घर को ही राजकीय संग्रहालय घोषित किया गया है. जिसका दर्द छपरा के जलालपुर वासियों को आज भी है. उनके गांव में भी वैसा कुछ कार्यक्रम आज के दिन नहीं होता. हां, वह पूरबी गीतों में आज भी गायकों के स्‍वर में जरूर जिंदा हैं.

महेंद्र अपूर्व रामायण की पाण्डुलिपि का नहीं हुआ प्रकाशन

पंडित मिश्र जिनका भोजपुरी भाषा के उनयन में वही स्थान है, जो हिंदी के उनयन में भारतेंदु हरिश्चन्द्र की रचनाओं का है. यह बिडम्बना है कि आज भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की जद्दोजहद चल रही है, वहीं उनका पहला महाकाव्य महेंद्र अपूर्व संगीत रामायण को आज तक प्रकाशित नहीं कराया जा सका है.

नहीं मिला पंडितजी को आज तक कोई सम्मान

स्थानीय लोगों में रमेश तिवारी, हरीश तिवारी, राजेश कुमार तिवारी सहित कई लोगों का कहना है कि बिहार सरकार ने इनकी जयंती को सरकारी कलेंडर में शामिल तो कर लिया, पर इनके नाम पर आज तक कुछ भी नहीं हो पाया है. इन्हें अब तक स्वतन्त्रता सेनानी का सम्मान भी नहीं मिल सका.

अंदर तक छूती है उनकी कविता

उनकी कविता सहज रूप से अंदर तक छूती है, कुछ महसूस कराती है और सचमुच कविता कही जाने की अधिकारी भी है. मिश्र जी द्धारा प्रणित गीतों बीसों काव्य-संग्रहों की चर्चा उनके “अपूर्व रामायण” तथा अन्य स्थानों पर आई है. महेंद्र मंजरी, महेंद्र विनोद, महेंद्र दिवाकर, महेंद्र प्रभाकर, महेंद्र रत्नावली, महेंद्र चन्द्रिका, महेंद्र कुसुमावती, अपूर्व रामायण सातों कांड, महेंद्र मयंक, भागवत दशम स्कंध, कृष्ण गीतावली, भीष्म वध नाटक आदि की चर्चा हुई है, किंतु इनमें से अधिकांश आज अनुपलब्ध हैं. एकाध प्रकाशित हुए और शेष आज भी अप्रकाशित हैं. मेरा अनुमान है कि ये छोटे-छोटे काव्य-संग्रह रहे होंगे और उनके गायक मित्रों द्धारा ले लिए गए अथवा रख-रखाव के अभाव में काल कवलित हो गए. उनके अन्वेषण का कार्य भी शिथिल ही है. कवि ने अपने अपूर्व रामायण के अंत में अपना परिचय एक स्थल पर दिया है, जो सर्वाधिक प्रामाणिक परिचय है-

मउजे मिश्रवलिया जहाँ विप्रन के ठट्ट बसे,
सुन्दर सोहावन जहां बहुते मालिकाना है ।
गांव के पश्चिम में विराजे गंगाधर नाथ,
सुख के स्वरुप ब्रह्मरूप के निधाना हैं ।
गांव के उत्तर से दखिन ले सघन बांस,
पूरब बहे नारा जहा कान्ही का सिवाना है ।
महेंद्र रामदास पुर के ना छोड़ो आस,
सुख दुःख सब सह करके समय को बिताना है ।