आखिर पीने का पानी कब बनेगा चुनावी मुद्दा

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बैरिया (बलिया) से वीरेंद्र नाथ मिश्र

363 बैरिया विधानसभा क्षेत्र में लगभग सभी प्रत्याशी अपने अपने स्तर व सोच के मुताबिक विधानसभा क्षेत्र में जड़ जमा चुकी समस्याओं के बारे में बताकर उसका समाधान कराने का दावा ठोक रहे हैं और वोट माग रहे हैं. लेकिन इस विधानसभा क्षेत्र में शुद्ध पेयजल की सबसे बड़ी समस्या है. इसे नजरअंदाज किया जा रहा है. गौरतलब है कि लगभग डेढ़ दशक से बैरिया विधानसभा क्षेत्र के गंगा तटवर्ती गावों  में हैंड पाइपों से निकलने वाले पानी में संखिया (आर्सेनिक) की मात्रा काफी बढ़ गई है. डेढ़ दशक से इस समस्या को लेकर समाचार पत्रों और नेताओं के भाषण में खूब हायतौबा मचती रही. इस समस्या के समाधान के लिए कई बार विशेषज्ञों की टीमों ने आकर जांच भी किया और रिपोर्ट भी सरकार के यहां प्रस्तुत की, लेकिन इस डेढ़ दशक के लंबे प्रयासों के बाद भी इस समस्या का स्थाई समाधान नहीं निकाला जा सका.

कहने को तो विधानसभा क्षेत्र में लगभग डेढ़ दर्जन ओवर हेड टैंक बनाकर लोगों को शुद्ध पेयजल सुलह कराने की योजनाएं बनी. कई जगह ओवरहेड टैंक बनाए गए.  काफी जगह आधा अधूरा है. भौतिक स्तर पर उसके निर्माण में धांधली, कमीशनखोरी ही जनता के जुबान पर आती रही. हालात यह है कि बैरिया विधानसभा की लगभग पूरी आबादी आर्सेनिक  युक्त जल पीने को विवश है. इस पानी से सबसे पहले तो धुलने पर कपड़े पीले होते हैं. लोगों के शरीर पर तिल के निशान जैसे बन जाते हैं. तरह-तरह के चर्म रोग होते हैं. इस जल के प्रयोग से कई लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो जीवन गंवा चुके हैं. इस पानी के प्रयोग से पेट संबंधी बीमारियां इस इलाके के लगभग घर-घर हैं कई बात हो गयी है.

जांच के बाद जब यहां के पानी में आर्सेनिक की मात्रा अधिक पाए जाने लगी, तो यहां की आबादी अब जगह जगह पानी खरीद कर पीने लगी हैं. इसके लिए इलाके के कुछ लोग पानी फिल्टर व आर्सेनिक मुक्त करके घर घर पहुंचा रहे हैं. 20 लीटर पानी की बोतल दूरी के हिसाब से 20 से 35 रुपये प्रति बोतल खरीदना पड़ रहा है. यहां यह बताते चलें यह समस्या लगभग डेढ़ दशक से है. इस दौरान बैरिया विधानसभा ने तीन तीन विधायक दिए. यदि इस समस्या के समाधान के प्रति सोच अच्छी होती तो एक विधायक का ही कार्यकाल इस समस्या के निजात के लिए पर्याप्त है. बावजूद इसके यह समस्या जस की तस बनी हुई है.

विवशता में लोगों को राशन, वस्त्र, साग, सब्जी और अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं की ही तरह पानी खरीद कर पीना पड़ रहा है. कहने को तो मंच से कहने के लिए जनप्रतिनिधियों के पास इसके निदान की बहुत सी योजनाएं हैं, लेकिन डेढ़ दशक से चली आ रही इस समस्या के समाधान के लिए कोई एक 5 वर्ष का कार्यकाल अपने-अपने पर्याप्त था. जिसे बैरिया विधानसभा की आवाम खूब अच्छी तरह से समझ रही है.