मधेशी मोर्चा के आन्दोलन को देख प्रशासन व आयोग चिन्तित

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तीन माह बाद होना है निकाय व ग्राम पंचायत चुनाव
मधेशी नेताओं से वार्ता में जुटी नेपाल सरकार

काठमांडू से अरुण वर्मा 

सरकार द्वारा घोषित चुनाव की उल्टी शुरू हो गई है. तीन माह बाद निकाय व ग्राम पंचायत के चुनाव होने की घोषणा के बाद जंहां मधेशी आन्दोलन में और तेजी आने के आसार दिख रहे हैं. वहीं सरकार व प्रशासन के माथे पर चिंता की लकीर. मधेशी समुदाय व संघीय गठबंधन द्वारा चुनाव बहिष्कार की घोषणा के बाद से नेपाली चुनाव आयोग के भी पसीने छूट रहे हैं. पिछले दिनों नेपाल के मर्चवार क्षेत्र में हुए हिंसक माहौल को देख नेपाल सरकार ने मधेश दल के नेताओं से बातचीत का सिलसिला शुरू कर दिया है. हैरत करने वाली बात यह भी है कि रुपंदेही व नवल परासी सहित कुछ जनपदों के विभिन्न क्षेत्र के सांसदों ने चुनाव बहिष्कार के पक्ष में कोई बयान नहीं दिया है. वहीं पिछले दिनों मधेश प्रदेश की मांग को लेकर चर्चा में आये पूर्व सांसद गुलजारी यादव तथा महेंद्र यादव भी चुप्पी साधे हैं. जो कहीं न कहीं मधेशी दल के नेताओं के बीच मतभेद को दर्शा रही है.

चुनाव बहिष्कार घोषणा करने वालों में मधेशी मोर्चा सहित अन्य सहयोगी पार्टी के बड़े नेताओं के द्वारा प्रत्यक्ष विरोध की भी बात सामने नहीं आ रही है. वहीं दूसरी तरफ बिना किसी बड़े नेता के चेहरे बगैर मर्चवार क्षेत्र के मझगांवा, तुनियहवा, बगौली , नवल परासी के विभिन्न इलाकों सहित ओडवलिया गांव में प्रशासन व मधेशियों के बीच हुए हिंसक घटनाओं से प्रशासन व आयोग सोंचने को मजबूर हैं कि आखिर सीके राउत जैसे अलग राष्ट्र की मांग करने वाले अलगाववादी मधेशी नेता के जेल में बंद होने के बाद भी मधेश क्रांति को भूमिगत बल कौन दे रहा है?
फिलहाल नेपाली प्रशासन और चुनाव आयोग मधेश दल के नेताओं से वार्ता कर चुनाव को शांतिपूर्ण महौल में कराने के प्रयास में जुटा है. वहीं जिला स्तरीय मधेश मोर्चा सहित संघीय गठबंधन के कार्यकर्ता इसके विरोध में है.

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