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सुरहताल के किनारे बाबा अवनी नाथ महादेव का मंदिर स्थित है. बलिया-बाँसडीह मार्ग स्थित बड्सरी गांव के पास एक किलोमीटर पश्चिम के तरफ है यह मंदिर. सुरहा ताल की हरी-भरी वादियां इस मंदिर को चार चांद लगाती हैं.
मान्यता है कि अवनी नाथ महादेव मंदिर का निर्माण राजा सुरथ ने करवाया था. राजा सुरथ अपने सभी राज्य हार कर और कुष्ठरोग से पीड़ित हो यहाँ आकर जंगल मे छिपकर रह रहे थे. उस समय सुरहताल नहीं था. राजा सुरथ को शौच के लिए जाना था, किंतु आसपास पानी नहीं था. वह मजबूर थे. इसी दौरान किसी कुम्हार ने वहां खुदाई करवाया. इसके के बाद वहां पानी का भंडार मिला.
इसी पानी से राजा सुरथ ने अपने हाथ साफ किए. हाथ साफ करते वक्त उस मिट्टी और पानी के प्रभाव से उनका हाथ सुवर्ण हो गया. राजा सुरथ ने वही रुककर आस पास के लोगों के प्रयास से लगभग चौदह किलोमीटर की खुदाई कर सुरहताल का निर्माण करवाया. आज भी राजा सुरथ के नाम पर ही सुरहताल पहचाना जाता है.
इसके बाद राजा सुरथ अगल बगल के सुरहताल के किनारे स्थित गावों में पाँच मंदिरों का निर्माण करवाया. इसमें तीन शिवमन्दिर और दो माँ भगवती का मंदिर है. इसमें बाबा अवनीनाथ महादेव मंदिर (बड्सरी), बाबा बनखंडी नाथ महादेव मंदिर (दीउली, बाँसडीहरोड) तथा शोखहरन नाथ महादेव मंदिर (असेगा, बेरुआरबारी) शामिल है. इसके अलावा मां ब्राह्मणी मंदिर अर्थात भगवती मंदिर (ब्रह्माइन, हनुमानगंज) और शंकरपुर स्थित शांकरी भगवती मंदिर का निर्माण करवाया. जिसका वर्णन दुर्गा सप्तशती में भी मिलता है. बाद में ग्रामीणों के सहयोग कर मंदिर का भव्य निर्माण करवाया. इन देवालयों में हर मनोकामना पूरी होती है. यहाँ अमूमन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. श्रावण मास और महाशिवरात्रि के दिन मेला लगने की भी परम्परा रही है.
जानिए कौन थे राजा सुरथ
मां दुर्गा की उपासना ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित कई देवताओं ने की. इनके साथ वेदव्यास, मार्कंडेय, जैमिनी नामक ऋषियों ने भी की, लेकिन दुर्गा की आराधना के अनन्य उपासक महाराज सुरथ एवं समाधी नामक वैश्य हैं. इन दो उपासकों की वृहद चर्चा दुर्गा सप्तशती एवं देवी भागवत में है. राजा सुरथ की सामरिक राजधानी कोल्हाचल नगरी है, जबकि राजा सुरथ को ज्ञान की प्राप्ति महर्षि सुमेधा के आश्रम में हुई.
राजा सुरथ की राजधानी और सुमेधा ऋषि के आश्रम की दूरी देवी भागवत में 12 कोस है. यह स्थान पुराणों में महाराष्ट्र के कोलापुर एवं झारखंड में चतरा का कोल्हेश्वरी एवं भद्रकाली आश्रम बताया जाता है. आज भी राजा सुरथ की राजधानी कोल्हा पहाड़ एवं सुमेधा आश्रम की दरी 12 कोस की है. रजरप्पा को भी राजा सुरथ की तपोस्थली बताया जाता है.
राजा सुरथ के संबंध में बताया जाता है कि सृष्टि के क्रम में 14 मन्वन्तरों के प्रसंग में सुरथ राजा जैसे देवी के प्रसाद से अष्टम मन्वन्तर के राजा हुए. यही कालांतर में सूर्य की सवर्णा नाम की स्त्री से उत्पन्न होकर अष्टम मनु नाम से विख्यात हुए. यही सुरथ द्वितीय मन्वन्तर में चैत्र नामक क्षत्रिय राजा हुए थे. इसलिए इन्हें चैत्र वंशीय राजा कहा गया. इसी जन्म में सुमेधा ऋषि से देवी की भक्ति का ज्ञान सुरथ को मिला.
दुर्गा सप्तशती में इसी वंश के काल का वर्णन मिलता है. इस जन्म में राजा सुरथ ने भगवती दुर्गा को तपबल से संतुष्ट किया और जब भगवती साक्षात प्रकट हुईं तो राजा ने भावावेश में खड्ग से अपना हाथ पोछ कर राजसी तरीके से भगवती दुर्गा को प्रसन्न किया. दुर्गा ने राजा को सावर्णि मनु होने का आशीर्वाद दिया. राजा दुर्गा की कृपा से खोया राज्य गौरव प्राप्त किया और दूसरे जन्म में सूर्य की पत्नी सर्वणा के पुत्र सावर्णि हुए. मनु का अर्थ सृष्टि का पहला आदमी-आदम-हव्वा इभ से है.
इस्लाम और ईसाई धर्म भी मनु अदम. इभ को स्वीकार करते हैं. राजा सप्तम मन्वन्तर में सूर्य और श्रया के पुत्र थे. समाधि वैश्य देवी की आशीर्वाद प्राप्त कर प्रतिष्ठित हो गए.