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बांसडीह : मां शतचंडी हवनात्मक नौ कुंडीय महायज्ञ की कलश यात्रा शनिवार को बांसडीह साधन सहकारी समिति के दक्षिण स्थित नहर के पास यज्ञ मण्डप से निकली. इसमें सैकड़ों महिलाओं और पुरुषों ने भाग लिया.
बांसडीह स्थित मां चक्रवर धारिणी दुर्गा मंदिर कचहरी पर से मां गंगा का जल भरकर यज्ञ मंडप तक ले जाया गया. यज्ञाचार्य पंडित पवन शुक्ला और श्री श्री 1008 श्री विजय रामदास जी के सानिध्य में कलश यात्रा निकाली गई.
मां शतचण्डी यज्ञ के बारे में यज्ञ के आचार्य पवन शुक्ला और संत विजय राम दास जी ने बताया कि शतचंडी यज्ञ बिगड़े ग्रहों को अपने पक्ष में करने का अचूक उपाय है. मां दुर्गा को शक्ति की देवी कहा जाता है. मां को प्रसन्न करने के लिए जो विधि पूर्ण की जाती है, उसे शतचंडी यज्ञ कहा जाता है.
आचार्य ने कहा कि नवचंडी यज्ञ को सनातन धर्म में बेहद शक्तिशाली बताया गया है. इस विधि के बाद सौभाग्य आपका साथ देने लगता है. मनुष्य खुद को एक आनंदित वातावरण में महसूस कर सकता है.
संत ने कहा कि वेदों में यहां तक कहा गया है कि शतचंडी यज्ञ के बाद दुश्मन भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकते. इस यज्ञ को गणेश जी भगवान शिव नवग्रह और नव दुर्गा देवी को समर्पित करने से मनुष्य का जीवन धन्य हो जाता है.
आचार्य ने कहा कि इस यज्ञ को करने में विद्वान ब्राह्मणों द्वारा 700 श्लोकों का पाठ किया जाता है. यह नवचंडी यज्ञ का साधारण यज्ञ भी बेहद शक्तिशाली और बड़ा यज्ञ होता है जिसमें देवी मां की अपार कृपा होती है.
उन्होंने कहा कि सनातन इतिहास में कहा गया है कि पूर्व काल में देवता और राक्षस लोग ऐसे यज्ञ का प्रयोग ताकतवर और ऊर्जावान होने के लिए निरंतर करते थे.
संत ने कहा कि दुर्गा सप्तशती के 108 बार करने को शतचंडी पाठ महायज्ञ कहा जाता है. फिर इसी पाठ्य को 1008 बार करने को सहस्त्र चंडी महायज्ञ कहा जाता है और इसे 100008 करने को लक्ष्य चंडी महायज्ञ कहा जाता है.
उन्होंने कहा कि इस यज्ञ को कराने से वातावरण की शुद्धता, गंगा नदी की निर्मलता व स्वच्छता के लिए लोगों में जागरूकता, पौराणिक स्थलों की भव्यता व जीर्णोद्धार के लिए समग्र बाधाओं से मुक्त होते हैं.