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बलिया : अपनी खेती, अपनी खाद, अपना बीज, अपना स्वाद. जैविक खेती ही एक ऐसी पद्धति है जिसमें किसी को हर तरह से संतुष्टि मिल सकती है. इससे पर्यावरण को स्वच्छ रखते हुए भूमि, जल एवं वायु को प्रदूषित किये बिना दीर्घकालीन फसल प्राप्त की जाती है. इसमें रसायनों का उपयोग नहीं होता है. यह सस्ती और स्थाई भी होती है. इससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है.
आज के समय में खेती करना रासायनिक उर्वरकों के महंगे होने के कारण किसानों की अधिक लागत लगती है. भूमि का आहार जीवाश्म है. जीवश्म गोबर, पौधों, खर-पतवार, जीवों के अवशेष आदि को खाद के रूप में भूमि को मिलते हैं. भूमि की उर्वरता बढ़ती है. फसल के लिए पौधों को सभी पोषक तत्व मिलते हैं.
प्रदेश के किसानों को प्रदेश सरकार जैविक खाद का प्रयोग करने के लिए बढ़ावा दे रही हैं. जैविक खेती के लिए नैडप विधि, वर्मी कम्पोस्ट, जैव उर्वरक एवं हरी खाद खेत में डालकर पैदावार बढ़ा सकते हैं. प्रदेश सरकार जैविक खाद बनाने के लिए अनुदान भी देती है. उसके प्रयोग से उगाई गई फसलों पर कीटों को प्रकोप बहुत कम होता है.
उन फसलों के खाद्यान्न, फल, सब्जियों में हानिकारक रसायन नहीं होते. जैविक उर्वरकों के प्रयोग से विदेशी मुद्रा की बचत भी होती है.