बलिया-बांसडीहरोड रेलवे सेक्शन और ट्रैफिक BLOCK

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नमस्कार
बलिया लाइव की बतकही में बसुधरपाह ब्लाग पर आपका स्वागत है
मैं विजय शंकर पांडेय

आखिर इंजीनियरों को क्यों मुंह चिढ़ा रहा था बलिया-बांसडीहरोड रेलवे सेक्शन
6 घंटे का ट्रैफिक ब्लॉक लेकर आखिर रेलवे के इंजीनियरों ने क्या गुल खिलाया
क्या सचमुच यह मर्ज 120 साल से लाइलाज था
आखिर कैसे हुआ 30 किलोमीटर प्रतिघंटा स्पीड का प्रतिबंध खत्म
आज की चर्चा में आइए इन्ही सवालों के जवाब तलाशते हैं.

पूर्वोत्तर रेलवे का बलिया-बांसडीहरोड रेलवे सेक्शन अभियंताओं के लिए लगातार चुनौती बना रहा….. बल्कि यूं कह लीजिए हमारे इंजीनियरों को मुंह चिढ़ाता रहा….. बीते शुक्रवार को 6 घंटे का ट्रैफिक ब्लॉक कर अभियंताओं ने रेल पटरियों और जमीन का बड़ा ऑपरेशन किया….. बल्कि यूं कह लीजिए कि बलिया और बांसडीहरोड रेलवे स्टेशनों के बीच 120 साल पुराने रोग का इलाज शुक्रवार को कर दिया गया…. अब 30 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार का लगा प्रतिबंध भी खत्म हो गया है…… ट्रेनें इस सेक्शन में भी अब सामान्य गति से चल सकेंगी….. जबकि पहले तकनीकी समस्या के कारण तमाम प्रयास भी नाकाफी साबित हो चुके थे….

क्या होगा इससे यात्रियों को फायदा…..
सीपीआरओ पंकज सिंह का कहना है कि इस काम के पूरा हो जाने से इस खंड की कई समस्याओं का समाधान हो गया है….. इससे ट्रेनों की टाइमिंग में सुधार होगा…… इस खंड में रेल ट्रैक की सुरक्षा भी दुरुस्त होगी…… बांसडीह की तरफ एक कर्व को भी इस काम में खत्म कर दिया गया है….. जो भविष्य में ट्रेनों की गति बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगा….

आखिर बीमारी क्या थी…..
जांच में पता चला कि इस क्षेत्र में रेल लाइन का निर्माण जलोढ़ मिट्टी अर्थात ब्लैक कॉटन स्वायल से हुआ है….. जो कि पर्याप्त मात्रा में था……. इसके लिए रेलवे ने फैसला लिया कि इस पूरे हिस्से से पुरानी मिट्टी को हटाकर वर्तमान रेलपथ को पुराने मीटरगेज फारमेशन को निर्धारित मानक पर बनाया जाए…….

कब से ऐसा था…..
यात्री यातायात के लिए 1899 में बलिया-बांसडीहरोड रेलवे सेक्शन खोला गया….. तब, यह लाइन मीटर गेज यानि छोटी लाइन हुआ करती थी….. साल 1995 में इसे बड़ी लाइन के रूप में कन्वर्ट कर दिया गया……. बलिया से बांसडीहरोड के बीच 3 किलोमीटर लंबा रेल पथ लगातार बैड फारमेशन की समस्या से प्रभावित रहा…… इस 3 किमी लंबे रेल पथ में मिस एलाइनमेंट, अन इवेननेंस जैसी समस्याएं रहीं….. इस कारण सामान्य मौसम में तो ट्रेनों को स्पीड प्रतिबंध के साथ निकाल ली जाती थी….. मगर बारिश में अक्सर ट्रेन यातायात रोकना पड़ता था…..

कितना खर्च हुआ इस काम में…..
इस काम के लिए रेलवे ने 16 करोड़ रुपये स्वीकृत किए….. दिसंबर 2018 से इस समस्या को दूर करने का काम शुरू हुआ…… 11 महीने में यह काम पूरा हुआ….. 12 नवंबर को रेल संरक्षा आयुक्त ने प्रमुख मुख्य इंजीनियर और वाराणसी के अफसरों की टीम के साथ इसका निरीक्षण किया….. 22 नवंबर को इस डायवर्जन पर ट्रेन परिचालन की स्वीकृति प्रदान कर दी गई…… 28 नवंबर को इंजीनियरिंग और विद्युत कार्य को ब्लॉक लेकर पूरा करा दिया गया…..