युवाओं को परंपरा की थाती देता है आदर्श रामलीला कमेटी का रंगमंच

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नितेश पाठक की रिपोर्ट

दुबहड : प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के शहीद मंगल पांडेय के पैतृक गांव नगवां में विजयादशमी के बाद से शुरू होनेवाली 98 साल पुरानी रामलीला मंचन की परंपरा कइ मायनों में युवाओं के लिए पाठशाला साबित हो रही हैं. यहां अभिनय और कला गांव के लोगों को दिखाने की परंपरा हैं . आज बुजुर्ग हो चुके लोग अपने बाबा – दादा से रामलीला सीखे थे. अब युवा पीढ़ी उनसे अभिनय सीख रही है.

राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कृत हो चुके 82 वर्षीय शिवजी पाठक गांव में होनेवाली रामलीला के मंच पर रावण का किरदार निभाते हुए दहाड़ते हैं तो लोग सुनते रहते हैं. शारीरिक अस्वस्थता के चलते रावण के किरदार की जिम्मेदारी कभी कभार 72 वसंत देख चुके जवाहरलाल पाठक भी निभाते हैं. मंच में युवाओं की भागीदारी भी रहती हैं.

करीब 20 दिनों तक गांव गुलजार रहता है. पिछले 98 वर्षों से जारी इस परंपरा का मकसद बेहतर समाज का निर्माण है. मंचन में अहम भूमिका निभानेवाले अधिकतर सदस्य सरकारी,गैर सरकारी नौकरी करने वाले हैं. नगवां वासी चिंतक बब्बन विद्यार्थी का कहना है कि राम और सीता का चरित्र जीवन में उतारना जरूरी हैं.

1922 में नवजद पाठक ने रखी थी नीव :
रामलीला की शुरूआत 1922 में नवजद पाठक नें भुतहिया बारी ( बगीचे ) में की थी. दोपहर 12 बजे गांव के पुरुष और महिलाएं घरेलू काम काज से निवृत्त होकर बगीचे में पहुंचते थे. तीन घंटे रामलीला का मंचन होता था.

समय के साथ बदलती गयी बागडोर :
वर्ष 1968 में नवजद पाठक की मौत 96 वर्ष की अवस्था में हो गयी तो रामसिंघासन पाठक और कपिल देव उपाध्याय ने परंपरा का निर्वहन किया. इसके बाद 1975 से सर्वानंद पाठक, साधु चरण पाठक और शिवजी पाठक का नेत्तृत्व मिला. फिलहाल सेवानिवृत्त शिक्षक सूर्य नारायण पाठक, जवाहरलाल पाठक और राजनारायण पाठक देखरेख कर रहे हैं.

युवाओं के हाथ में हैं रामलीला कमेटी :
आदर्श रामलीला कमेटी नगवां की कमान युवाओं के हाथ में है. कमेटी के अध्यक्ष जितेन्द्र पाठक, मंत्री हरेराम पाठक और कोषाध्यक्ष अनिल पाठक बनाए गए हैं. व्यास गद्दी की जिम्मेदारी राजनारायण पाठक और विदुषक की भूमिका हास्य कलाकार जागेश्वर मितवा निभा रहे हैं.