अब तीर्थराज हो गया बलिया

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  • भृगु – दर्दर क्षेत्र के गंगा तट पर संतों ने डाले कल्पवास के डेरे
  • दीपावली के दूसरे दिन भृगुआश्रम से शुरू होगी पंचकोसी परिक्रमा

बलिया: कार्तिक मास कल्पवास के साथ ददरी मेले का काउंट डाऊन शुरु, काशी के कैथी मारकण्डेय महादेव से लेकर चिरान्द दिघवारा, छपरा बिहार तक फैली भृगुक्षेत्र के गंगा तट पर संतों ने लगाये कल्पवास के खालसे, नेमियों के साथ – साथ दामोदर मास का पुण्य फल पाने के लिए आस्थावानों ने गंगा नहाना शुरू किया.

कार्तिक मास में भृगु – दर्दर क्षेत्र बलिया तीर्थराज हो जाता है. काशी से भी एक जौ ऊंचा आध्यात्मिक महात्म्य हो जाता है इस क्षेत्र का. पद्मपुराण दर्दरक्षेत्र महात्म्य खण्ड के अनुसार:

कार्तिक मास में जब सूर्य तुला राशि में होते है, तो सारे ऋषि, मुनि, सिद्ध, गंधर्व, पितर, विद्याधर, विद्वान सभी तीर्थराज प्रयाग सहित सभी तीर्थ उनकी पवित्र नदियां, सरोवर, हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, पम्पा, अयोध्या, मथुरा, अवंतिकापुर आदि सभी मोक्ष देने वाले पुण्यदाता तीर्थ यहां पूर्णिमा पर्यन्त निवास कर अपने पाप प्रक्षालित करते हैं.

भृगु-दर्दर क्षेत्र में कार्तिक मास का कल्पवास शरद पूर्णिमा के दिन से प्रारंभ हो जाता है. कार्तिक कृष्ण एकम से संतों के खालसे गंगा तट पर सजने लगते हैं. इसका शुभारम्भ सिद्ध संत स्वामी रामबालक दास जी के गंगा तट पर शरद पूर्णिमा को कल्पवास का ध्वजारोहण हो गया है. इस दिन से सम्पूर्ण भृगुक्षेत्र में गंगा तट पर विभिन्न मत पंथों के संत महात्मा अपने-अपने खालसे डालकर कल्पवास करते हैं. यह कार्तिक पूर्णिमा स्नान के साथ पूर्ण होता है.

कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि से भृगु दर्दर क्षेत्र की पंचकोशी परिक्रमा प्रारंभ होती है. पृथ्वी के सप्तद्वीपों की प्रदक्षिणा के बराबर पुण्य फल देने वाली यह पंचकोशी परिक्रमा यात्रा महर्षि भृगु मंदिर, भृगुआश्रम से प्रातः काल गर्गाश्रम के लिये प्रस्थान करती है.

योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के कुलगुरु गर्ग ऋषि के आश्रम सागरपाली से कपिल तीर्थ कपूरी, विमलतीर्थ देवकली, कुशहृदविंद सुरहाताल, कुशेश्वर-क्षितेश्वर नाथ छितौनी, महाभारत महाकाव्य के रचयिता वेदव्यास जी पिता पराशर ऋषि के आश्रम परसिया, हंसप्रपत्तन हांसनगर की परिक्रमा कर छठे दिन पुनः भृगु मंदिर बलिया पहुंच कर यह परिक्रमा पूर्ण होती है.

भृगुक्षेत्र में कार्तिक मास के कल्पवास का सबसे बड़ा आयोजन कार्तिक पूर्णिमा को गंगा-सरयू-तमसा नदियों के संगम धर्मवापी पर स्नान से सम्पन्न होता है. इसके साथ ही यहाँ भारत प्रसिद्ध ददरी मेला प्रारंभ हो जाता है.

गंगा द्वार गोमुख, हरिद्वार, प्रयागराज, काशी-वाराणसी एवं दर्दर क्षेत्र बलिया इन पाँच पवित्र तीर्थों में स्नान करने से मुक्ति की प्राप्ति होती है. इनमें दर्दर क्षेत्र ऐसा तीर्थ है जिसके दर्शन और स्पर्श मात्र से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो नारायण स्वरूप हो जाता है.

सभी प्रकार के यज्ञों को करने, सभी प्रकार दान करने से जो पुण्य फल मिलता है. वह पुण्य दर्दर क्षेत्र के स्पर्श मात्र से मिल जाता है. जो मनुष्य कार्तिक पूर्णिमा स्नान के लिये दर्दर क्षेत्र के लिये प्रस्थान करता है. तभी से उसके सारे पाप, भूत प्रेतादि रोने लगते हैं, व्याकुल हो जाते हैं.

जिस मोक्ष- पुण्यफल की प्राप्ति काशी में योग साधना करते हुए मृत्यु को प्राप्त करने और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त से मिलती है, वही मोक्ष-मुक्ति कलियुग में भृगु- दर्दर क्षेत्र के गंगा-सरयू-तमसा संगम पर कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से प्राप्त होती है.

जो पुण्य फल पुष्कर, नैमिषारण्य तीर्थों के से, साठ हजार वर्षों तक काशीवास करने से प्राप्त होता है. वही पुण्य दर्दर क्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता है.

पांच हजार ईसापूर्व से चली आ रही कार्तिक पूर्णिमा स्नान की परम्परा के वैज्ञानिक अध्ययन के बारे में कहते हैं कि इसके पीछे भृगु संहिता के रचयिता महर्षि भृगु की ज्योतिष कालगणना से जो तथ्य सामने आए हैं.

उसके अनुसार भृगुक्षेत्र का यह भू भाग पृथ्वी के ऐसे क्षैतिज पर अवस्थित है कि शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक सूर्य एवं चन्द्रमा की किरणें यहां की नदियों में अमृत तुल्य आरोग्यदायिनी ऊर्जा उड़ेलती हैं.

इसका सीधा लाभ यहां कल्पवास, स्नान करने वाले लोगों को मिलता है. पूर्वांचल की परम्परा है कि शादी के बाद पहली बार अपनी बेटी को ससुराल भेजने से पहले ददरी नहलाने अवश्य ले आते हैं.

मान्यता है कि इससे बेटियों की सारी बलैया दूर हो जाती है और उसकी गोद शीघ्र भर जाती है. पूर्वकाल की इस परम्परा का एक कारण यहां लगने वाला ददरी मेला भी है. जहां किसान परिवार की बेटियों की विदाई का सारा सामान एक ही जगह पर मिल जाता है.यह जानकारी शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने दी.