गांधी मजबूरी का नहीं मजबूती का नाम है: यशवंत सिंह

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बलिया: गांधी मजबूरी का नहीं मजबूती का नाम है और यह मजबूती आत्म बल से आती है, नैतिकता से आती है, आचरण की शुद्धता से आती है. गांधी जी ने समाज में जो कुछ भी कहा उसे सबसे पहले अपने आचरण में उतारा. मनुष्य को मनुष्य के रूप में देखने और उनके साथ मनुष्यता का आचरण करने का दर्शन है गांधी.

उक्त विचार प्रोफेसर यशवंत सिंह ने गांधी जी की 150 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित विचार गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किये. संकल्प साहित्यिक सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था बलिया द्वारा गांधी जयंती के अवसर पर “वर्तमान परिवेश में गांधी की प्रासंगिकता” विषय पर गोष्ठी आयोजित की गयी.

मुख्य वक्ता रामजी तिवारी ने कहा कि गांधी आज पहले से ज्यादा प्रासंगिक हैं. नफरत और असहिष्णुता के विरुद्ध गांधी हमेशा खड़े रहे. आज जब हमारी संवेदनाएं खत्म होती जा रही है और ईर्ष्या, द्वेष, घृणा हम पर हावी होते जा रहे हैं, तब गांधी याद आते हैं.

गौरी शंकर राय कन्या महाविद्यालय के शिक्षा विभाग के प्रवक्ता धनंजय राय ने कहा गांधी से हमें स्वावलंबन सीखना चाहिए. एक दूसरे पर दोषारोपण करने की बजाय खुद को मजबूत करने की जरूरत है.

डा. कादम्बिनी सिंह ने कहा कि गांधी व्यक्ति नहीं विचार है जो कभी नहीं मरेंगे. हमें गर्व है कि गांधी हमारे नायक हैं और हम गांधी के देश में रहते हैं. रंगकर्मी ट्विंकल गुप्ता ने कहा कि गांधी जी से हमें सविनय अवज्ञा सीखने की जरूरत है. जहां कहीं गलत हो रहा है उसका विरोध अहिंसक तरीके से ही सही हमें करना चाहिए.

मनोज दुबे ने गांधी के स्वच्छता अभियान को मजबूती के साथ अपनाने की जरूरत पर बल दिया. उन्होंने कहा कि बाहर की सफाई के साथ-साथ अपनी अंतरात्मा की शुद्धता भी जरूरी है. गोष्ठी में पंडित ब्रजकिशोर त्रिवेदी, मोहन जी श्रीवास्तव, आशुतोष पांडे,शैलेंद्र शुक्ला ने भी अपने विचार रखे.

गोष्ठी से पहले संकल्प के रंगकर्मियों ने सोनी के नेतृत्व में कैलाश गौतम का गीत “सिर फुटत हौ गला कटत हौ खून बहत हौ गांधी जी देश बटत हौ जइसे हरदी धान बंटत हौ गांधी जी” पेश किया. फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे’ भी पेश किया.

इस अवसर पर आनंद कुमार चौहान, अर्जुन, गोविंदा, अखिलेश, रोहित, विवेक इत्यादि उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन आशीष त्रिवेदी ने किया.