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बड़ों के सम्मान और उनके स्थान का सबको हमेशा ख्याल रखना चाहिए. यह बात तो जैसे घुट्टी में घोलकर पिला दी गयी हो. ऐसी शख्सियतों को याद करने पर लता मंगेशकर का नाम जेहन में आ जाता है. निराले अंदाज के लिए आज भी याद किये जाने वाले मरहूम किशोर कुमार उनके समकालीनों में ही थे. हालांकि वाकया इन दोनों से जुड़ा है.
यह तो सभी जानते हैं कि महज 13-14 साल की उम्र में ही लता जी पर घर की जिम्मेदारी आ गयी थी. 40 के दशक में लता जी काम के लिए स्टूडियो दर स्टूडियो जाकर दस्तक देने लगी थी. संगीतकार गुलाम हैदर ने उनकी आवाज को पहचाना और शशधर मुखर्जी के पास भेजा.
मुखर्जी साहब ने ‘पतली आवाज’ कहकर लता जी को काम देने से मना कर दिया था. इस बात से नाराज गुलाम हैदर साहब ने जवाब दिया कि एक दिन गाने के लिए इसके दरवाजे पर लोग नाक रगड़ेंगे.
उन दिनों ही किशोर कुमार खंडवा से बम्बई (अब मुम्बई) आये. बड़े भाई दादामुनि अशोक कुमार जमे हुए स्टार थे. किशोर दा की एक ही ख्वाहिश थी- वह थी गायक-अभिनेता कुंदनलाल सहगल से मिलने की. हालांकि दादामुनि की इच्छा थी कि किशोर दा अभिनय पर ध्यान दें. जो भी हो.
संयोग ही कहें कि स्टूडियो जाते हुए अक्सर लता जी और किशोर दा की मुलाकात हो जाती. किसे क्या लगता होगा, यह विषय नहीं है. लता जी ने उनके बारे में पता तो किया ही होगा. लता जी तो काम की तलाश में जाती थीं और किशोर दा अपने बड़े भाई के आदेश पर जाते थे.
लता जी को बाद में किशोर दा के बारे में पता चल गया. उन दोनों शख्सियतों के बारे में यह भी एक संयोग था. यह पता चलने पर कि किशोर दा का जन्मदिन 4 अगस्त 1929 है जबकि लता जी का 28 सितंबर 1929 है.
जब से उन्हें इस बात का पता चला तब से ही लता जी ने उन्हें ‘दादा’ कहना शुरू कर दिया. हालांकि बंगालियों को आम तौर पर वसभी ‘दादा’ ही संबोधित करते हैं. लता जी अंतर से भी किशोर दा को वही सम्मान देती थीं जो एक बड़े भाई को दिया जाना चाहिए.