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फैशन, फिटनेस, प्यार-मुहब्बत, टेक्नोलॉजी और न जाने क्या-क्या ट्रेंड में हैं. या यों कहें कि कौन-सी बात किसको ज्यादा अट्रैक्ट करती है. उसी लय में हम लोगों के बीच एक और ट्रेंड चल रहा है.ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि दो-तीन दशक पहले यह ट्रेंड मे नहीं रहा होगा. और वह है किसी से मुलाकात के बाद खुद को ‘प्रोफेशनल’ और ‘प्रैक्टिकल’ बताने का ट्रेंड.
हालांकि यह स्वतःस्फूर्त और सेल्फ-अटेस्टेड ही होता है. जरूरी नहीं कि समाज-समुदाय की स्वीकृति प्राप्त हो. ऐसा अनुभव अगर सबने न किया हो तो, सैकड़े में सत्तर लोगों को इससे गुजरना ही पड़ा होगा
इसी बात पर हमें कुछ याद आने लगा। एक बार किसी सज्जन से किसी काम के सिलसिले में ही परिचय हुआ. अपनी तारीफ में जनाब ने कहा या कह लें कि गोला दागा-देखिए साब, मैं प्रोफेशनल और प्रैक्टिकल आदमी हूं. तिकड़म से कोसों दूर. यह सुन पहले तो हम सिहर गए. अंग्रेजी के ये भारी भरकम शब्द सुनकर. फिर सोचे चलो देखा जाएगा. काम चल पड़ा.
एक बार हमारा मोबाइल फ़ोन खराब हो गया. लाज़िमी है परेशानी भी हो रही थी. एक दिन जनाब का फ़ोन आया. उन्होंने हाल पूछा और हमने बताया. उनका कहना था कि वह हमें एक मोबाइल फ़ोन देना चाहते हैं. तब अपनी आर्थिक स्थिति भी कुछ ठीक नहों थी. सो हमने अपनी बात कायदे से उनके सामने रख दी. ज़रा भी देर किये बिना उन्होंने ज्ञान देना शुरू कर दिया.जीवन दर्शन समझाने लगे. उसके साथ ही हम भी सोचने लगे कि आखिर क्या बात हो गयी. हमने तो मोबाइल के बदले कुछ पैसों की ही तो बात की थी. हमें लेखक हरिशंकर परसाई की ‘बेचारा भला आदमी’ की बरबस याद आ गयी.
बातचीत का निष्कर्ष यही निकला कि वह अभी शहर से बाहर जा रहे हैं. तीन-चार दिनों बाद लौटेंगे.और इंतज़ार की घड़ियां कुछ और आगे बढ़ गयीं.
आगे भी इस ब्रांड के कई लोग मिले, मगर हम लगातार बचने की कोशिश करते रहे, फिर भी कहीं न कहीं उलझ ही जाते.
जहां तक हमारी सोच की हद है, हमें तो यही लगा कि किसी से करीबी बढ़ाने से पहले लोगों को सौ बार सोच लेना चाहिए.
हम यही सोचते रहे कि ‘प्रोफेशनल’ और ‘प्रैक्टिकल’ आदमी ऐसे होते हैं क्या. बहरहाल, हम तो इसी नतीजे पर पहुंचे कि जब भी कोई सेल्फ अटेस्टेड प्रोफेशनल और प्रैक्टिकल इंसान से सामना हो जाये तो किनारे ही हो लो. अपना काम भी निकाल ले और एवज़ में ज्ञान की घुट्टी पिला जाए. ऐसे लोगों को ढूंढने कही दूर-दराज जाने की ज़रूरत नहीं,आसपास ही मिल जाएंगे.