113 वीं जयन्ती पर याद किए गए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

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दुबहड़(बलिया)। हिन्दी साहित्य-जगत् में पूरी दुनिया का पथ-प्रदर्शक करने वाले मूर्धन्य विद्वान एवं कालजयी साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की 113 वीं जयंती, सोमवार को उनके पैतृक गांव ओझवलिया में सादगी से मनाई गई. प्रबुद्धजनों ने आचार्य द्विवेदी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धा से नमन किया.
आचार्य पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी स्मारक समिति के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य वक्ता साहित्यकार श्रीचन्द्र पाठक ने कहा कि हिंदी साहित्य के पुरोधा एवं बलिया के गौरव आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी एक ऐसे अलौकिक प्रतिभा एवं पुरूषोत्तम महान् व्यक्तित्व के स्वामी है, जिनके सत्कार्यो के ज्योतिर्मय प्रकाश-पुञ्ज से बलिया का नाम पूरे विश्व में आलोकित है. कहा कि “आज विद्वान चकित है,पंडित अचरज में है, कितनी बड़ी ताकत और कैसा निरीह रूप”, पंडितजी की अपने ही जनपद में शासन और जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा से देश के सम्पूर्ण विद्वत्त-समाज अत्यन्त ही दुःखी व निराश है. हिन्दी साहित्य जगत् के देदीप्यमान नक्षत्र व शीर्षस्थ साहित्यकार द्विवेदी जी की स्मृतियों को जीवंत व संजोने के लिए गाँव में संग्रहालय, आदमकद प्रतिमा, पुस्तकालय आदि कुछ भी नहीं है. जिसका मलाल हम सब ग्रामवासियों को सदैव रहता है.
व्यास गौरीशंकर गिरि ने भोजपुरी गीतों के माध्यम से उनका जीवन-वृतान्त सुनाते हुए कहा कि “जानत जिनका के रहलहा जहान ए भइया,उनके जन्मदिन पर भइल बा जुटान ए भइया,उत युगपुरूष रहले महान ए भइया.
पंडित दीना चौबे ने वैदिक मन्त्रोच्चारण के साथ दीप प्रज्जवलित कर कुसुमाञ्जलि अर्पित करते हुए कहा कि आचार्य जी ने गम्भीर अध्ययन, मनन एवं चिंतन द्वारा तपोनिष्ठ जीवन में हिन्दी की महनीय सेवा की है. साथ ही अपने अध्ययन-अध्यापन,अनुसंधान तथा अपनी कृतियों के माध्यम से हिंदी की गौरव-गरिमा को समुन्नत करने का अनवरत प्रयास किया है. अक्षयवर मिश्र ने कहा कि गुरूजी के सम्पर्क में आये हुए कतिपय अल्पज्ञ भी बहुश्रुत विद्वान बन जाने की प्रेरणा ग्रहण कर तथा इनके ज्ञानप्रदीप से अपने अन्तस्तल के अज्ञानान्धकार को विदीर्ण कर स्वयं प्रोद्भासित हो उठे. अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में ग्राम प्रधान विनोद दुबे ने कहा कि ‘पद्मभूषण से सम्मानित आचार्य जी हिन्दी-साहित्य जगत् के महान् प्रकाशस्तम्भों में से अप्रतिम है. हिन्दी जगत् में ऋषितुल्य उनका व्यक्तित्व प्रेरणा का ही स्त्रोत है. यदि हमारे युवा उनके पद-चिन्हों पर चलें और उनका अनुकरण करें तो अवश्य ही वे भी प्रतिभावान और कोविद बनेंगे. सत्यनारायण गुप्ता ने कहा कि गुरूजी को निकट से देखने व जानने का सुअवसर मुझे सन् 1972-73 में मिला. द्विवेदी जी में प्रखर पाण्डित्य, शील, विनय, ऋजुता आदि सभी गुणों का समावेश था. कार्यक्रम के अन्त में समिति के प्रबन्धक/सचिव एवं आयोजक सुशील कुमार द्विवेदी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि विद्वत्त समाज के कण्ठहार व बलिया के महान सपूत, गुरूश्रेष्ठ आचार्य जी के साथ एक युग जुड़ा हुआ है. उन्होंने हिन्दी व ज्योतिष के सर्वांगीण विकास में अद्वितीय योगदान दिया है. इस अवसर पर वृजकिशोर दुबे, गुप्तेश्वर मिश्र, सोनू दुबे, दिनेश कुमार, शम्भूनाथ भारती, विनोद गुप्ता, वीरेन्द्र दुबे,आदि मौजूद रहे.
अध्यक्षता ग्राम प्रधान विनोद दुबे एवं संचालन सुशील कुमार द्विवेदी ने किया.